अपने लेख या पोस्ट को अपडेट करने के लिए सम्पर्क करे - 9415331761

शेर और लड़का उपन्यास सम्राट प्रेमचंद की

 शेर और लड़का

उपन्यास सम्राट प्रेमचंद हिंदी और उर्दू के कुछ प्रसिद्ध भारतीय लेखकों में से एक हैं। उनकी कहानियों में सामाजिक दशा के कई रंग देखने को मिलते हैं, जैसे जात-पात के भेदभाव से लेकर गरीबी और अमीरी के बीच के उभरते दर्द की झलक तक। उन्होंने अपनी कहानियों में सामाजिक स्थितियों का ताना-बाना ही नहीं बुना, बल्कि जंगल के जीव-जंतुओं को लेकर कुछ रोचक शिकार कहानियां भी लिखीं। प्रेमचंद द्वारा रचित ये कहानी एक ऐसे बच्चे की है, जो शेर का शिकार होते-होते बचा। 

रात ज्यों-त्यों करके कटी, सबेरा हुआ। लड़के को कुछ भरोसा हुआ कि शायद शेर उसे छोड़कर चला जाए। मगर, शेर ने हिलने का नाम तक न लिया। सारे दिन वह उसी पेड़ के नीचे बैठा रहा। शिकार सामने देखकर वह कहां जाता?

इलस्ट्रेशन यशवंत नामदेव

शेर तो शायद न देखा हो, लेकिन उसका नाम तो सुना ही होगा। शायद उसकी तस्वीर देखी हो और उसका हाल भी पढ़ा हो। शेर अकसर जंगलों और कछारों में रहता है। कभी-कभी वह उन जंगलों के आस-पास के गांवों में आ जाता है और आदमी तथा जानवरों को उठा ले जाता है। कभी-कभी उन जानवरों को मारकर खा जाता है, जो जंगलों में चरने जाया करते हैं।

थोड़े दिनों की बात है कि एक गड़रिया का लड़का गाय-बैलों को लेकर जंगल में गया और उन्हें जंगल में छोड़कर एक झरने के किनारे मछलियों का शिकार खेलने लगा। जब शाम होने को आई, तो उसने अपने जानवरों को इकट्ठा किया, मगर एक गाय का पता न था। उसने इधर-उधर दौड़-धूप की, मगर गाय का पता न चला। बेचारा बहुत घबराया। मालिक अब मुझे जीता न छोड़ेंगे। उस वक्त ढूंढ़ने का मौका न था, क्योंकि जानवर फिर इधर-उधर चले जाते। इसलिए वह उन्हें लेकर घर लौटा और उन्हें बाड़े में बांधकर बिना किसी से कुछ कहे हुए गाय की तलाश में निकल पड़ा। उस छोटे लड़के की यह हिम्मत देखो, अंधेरा हो रहा है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, जंगल भांय-भांय कर रहा है। गीदड़ों का हौवाना सुनाई दे रहा है, पर वह बेखौफ जंगल में बढ़ा चला जाता है। कुछ देर तक तो वह गाय को ढूंढ़ता रहा, लेकिन जब और अंधेरा हो गया, तो उसे डर मालूम होने लगा। जंगल में अच्छे-अच्छे आदमी डर जाते हैं, उस छोटे-से बच्चे का कहना ही क्या। मगर जाए कहां? जब कुछ न सूझी, तो एक ऊंचे पेड़ पर चढ़ गया और उसी पर रात काटने की ठान ली।


उसने पक्का इरादा कर लिया था कि बगैर गाय को लिए घर न लौटूंगा। दिनभर का थका-मांदा वो था ही, उसे जल्दी नींद आ गई। नींद चारपाई और बिछावन नहीं ढूंढ़ती। अचानक पेड़ इतनी जोर से हिलने लगा कि उसकी नींद खुल गई। वह गिरते-गिरते बच गया। सोचने लगा, पेड़ कौन हिला रहा है? आंखें मलकर नीचे की तरफ देखा, तो उसके रोएं खड़े हो गए। एक शेर पेड़ के नीचे खड़ा उसकी तरफ ललचाई हुई आंखों से ताक रहा था। उसकी जान सूख गई। वह दोनों हाथों से डाल से चिमट गया। नींद भाग गई। कई घंटे गुजर गए, पर शेर वहां से जरा भी न हिला। वह बार-बार गुर्राता और उछल-उछल कर लड़के को पकड़ने की कोशिश करता। कभी-कभी तो वह इतने नजदीक आ जाता कि लड़का जोर से चिल्ला उठता। रात ज्यों-त्यों करके कटी, सबेरा हुआ। लड़के को कुछ भरोसा हुआ कि शायद शेर उसे छोड़कर चला जाए। मगर, शेर ने हिलने का नाम तक न लिया। सारे दिन वह उसी पेड़ के नीचे बैठा रहा। शिकार सामने देखकर वह कहां जाता। पेड़ पर बैठे-बैठे लड़के की देह अकड़ गई थी, भूख के मारे बुरा हाल था, मगर शेर था कि वहां से जौ भर भी न हटता था। उस जगह से थोड़ी दूर पर एक छोटा-सा झरना था। शेर कभी-कभी उस तरफ ताकने लगता था। लड़के ने सोचा कि शेर प्यासा है। इससे उसे कुछ आस बंधी कि ज्यों ही वह पानी पीने जाएगा, मैं भी यहां से खिसक चलूंगा।


आखिर शेर उधर चला। लड़का पेड़ पर से उतरने की फिक्र कर ही रहा था कि शेर पानी पीकर लौट आया। शायद उसने भी लड़के का मतलब समझ लिया था। वह आते ही इतने जोर से चिल्लाया और ऐसा उछला कि लड़के के हाथ-पांव ढीले पड़ गए, जैसे वह नीचे गिरा जा रहा हो। मालूम होता था, हाथ-पांव पेट में घुसे जा रहे हैं। ज्यों-त्यों करके वह दिन भी बीत गया। ज्यों-ज्यों रात होती जाती थी, शेर की भूख भी तेज होती जाती थी। शायद उसे यह सोच-सोचकर गुस्सा आ रहा था कि खाने की चीज सामने रखी है और मैं दो दिन से भूखा बैठा हूं। क्या आज भी एकादशी रहेगी? वह रात भी उसे ताकते ही बीत गई। तीसरा दिन भी निकल आया। मारे भूख के उसकी आंखों में तितलियां-सी उड़ने लगीं। डाल पर बैठना भी उसे मुश्किल मालूम होता था। कभी-कभी तो उसके जी में जाता कि शेर मुझे पकड़ ले और खा जाय। उसने हाथ जोड़कर ईश्वर से विनय की, ‘भगवान, क्या तुम मुझ गरीब पर दया न करोगे...?’


शेर को भी थकावट मालूम हो रही थी। बैठे-बैठे उसका जी ऊ ब गया। वह चाहता था कि किसी तरह जल्दी से शिकार मिल जाए। लड़के ने इधर-उधर बहुत निगाह दौड़ाई कि कोई नजर आ जाए, मगर कोई नजर न आया। तब वह चिल्ला-चिल्लाकर रोने लगा। मगर वहां उसका रोना कौन सुनता था। आखिर उसे एक तदबीर सूझी।


वह पेड़ की फु नगी पर चढ़ गया और अपनी धोती खोलकर उसे हवा में उड़ाने लगा कि शायद किसी शिकारी की नजर पड़ जाए। एकाएक वह खुशी से उछल पड़ा। उसकी सारी भूख, सारी कमजोरी गायब हो गई। कई आदमी झरने के पास खड़े उस उड़ती हुई झंडी को देख रहे थे। शायद उन्हें अचंभा हो रहा था कि जंगल के इस पेड़ पर झंडी कहां से आई। लड़के ने उन आदमियों को गिना एक, दो, तीन, चार। जिस पेड़ पर लड़का बैठा था, वहां की जमीन कुछ नीची थी। उसे खयाल आया कि अगर वे लोग मुझे देख भी लें, तो उनको यह कैसे मालूम होगा कि पेड़ के नीचे तीन दिन का भूखा एक शेर भी बैठा हुआ है। अगर मैं उन्हें होशियार न कर दूं, तो यह दुष्ट किसी-न-किसी को जरूर चट कर जाएगा। यह सोचकर वह पूरी ताकत से चिल्लाने लगा। उसकी आवाज सुनते ही वे लोग रुक गए और अपनी-अपनी बन्दूकें संभाल कर उसकी तरफ ताकने लगे।


लड़के ने चिल्ला कर कहा—‘होशियार रहो! होशियार रहो! इस पेड़ के नीचे एक शेर बैठा हुआ है! शेर का नाम सुनते ही वे लोग संभल गए। झटपट बंदूकों में गोलियां भरी और चौकसे होकर आगे बढ़ने लगे। शेर को क्या खबर कि नीचे क्या हो रहा है। वह तो अपने शिकार की ताक में घात लगाए बैठा था। यकायक पैरों की आहट पाते ही वह चौंक उठा और उन चारों आदमियों को एक टीले की आड़ में देखा। फिर क्या कहना था। उसे मुंह मांगी मुराद मिली। भूख में सब्र कहां। वह इतने जोर से गरजा कि सारा जंगल हिल गया और उन आदमियों की तरफ जोर से जस्त मारी। मगर वे लोग पहले ही से तैयार थे। चारों ने एक साथ गोली चलाई- दन! दन! दन! दन! आवाज हुई। चिड़ियां पेड़ों से उड़-उड़कर भागने लगीं। लड़के ने नीचे देखा, शेर जमीन पर गिर पड़ा था।

वह एक बार फिर उछला और फिर गिर पड़ा। फिर वह हिला तक नहीं। लड़के की खुशी का क्या पूछना। भूख-प्यास का नाम तक न था। झटपट पेड़ से उतरा, तो देखा सामने उसका मालिक खड़ा है। वह रोता हुआ उसके पैरों पर गिर पड़ा। मालिक ने उसे उठाकर छाती से लगा लिया और बोला—‘क्या तू तीन दिन से इसी पेड़ पर था?’

लड़के ने कहा,‘हां, उतरता कैसे? शेर तो नीचे बैठा हुआ था।’

मालिक,‘हमने तो समझा था कि किसी शेर ने तुझे मारकर खा लिया। ये चारों आदमी तीन दिन से तुझे ढूंढ़ रहे हैं। तूने हमसे कहा तक नहीं और निकल खड़ा हुआ।’ लड़का,‘मैं डरता था, गाय जो खोई थी।’

मालिक,‘अरे पागल, गाय तो उसी दिन आप ही आप चल आई थी।’ भूख-श्वास से शक्ति तक न रहने पर भी लड़का हंस पड़ा।



Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.