RELATIONSHIP BETWEEN GENES AND PROTEINS

 जीन्स तथा प्रोटीन्स में सम्बन्ध (RELATIONSHIP BETWEEN GENES AND PROTEINS) 

ग्रेगर जॉन मेन्डल (Gregor John Mendel) ने सन् 1866 में आनुवंशिकी (heredity or inheritance) के नियम बनाए और अपने प्रयोगों द्वारा सिद्ध किया कि जीवों में प्रत्येक आनुवंशिक लक्षण का दृश्यरूप प्रकटन एक जोड़ी ऐसी कणरूपी सूक्ष्म संरचनाओं के प्रभाव से होता है जो प्रजनन (reproduction) में नर व मादा लैंगिक कोशिकाओं (sex cells) अर्थात् युग्मकों (male and female gametes) के जरिए एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी में जाती रहती हैं। इन सूक्ष्म संरचनाओं को उन्होंने एकक अभिकर्ताओं अर्थात् कारकों (unit factors) का नाम दिया। दुर्भाग्यवश, मेन्डल की इस खोज का पता वैज्ञानिकों को 34 वर्ष बाद सन् 1900 में चला। इस समय तक भी वैज्ञानिकों को आनुवंशिक लक्षणों की दृश्यरूप में प्रोटीन्स की भूमिकाओं तथा प्रोटीन्स और DNA के सम्बन्ध के बारे में कोई स्पष्ट ज्ञान नहीं था। अभिव्यक्ति


सन् 1902 में आर्किबोल्ड गैरोड (Archibold Garrod) ने कुछ लोगों में ऐल्काटोनूरिया (Alkaptonuria) नामक एक ऐसे आनुवंशिक रोग का पता लगाया जो केवल एक ही उपापचयी अभिक्रिया में गड़बड़ी के कारण होता है, परन्तु जिसकी वंशागति मेन्डल के नियमों के अनुसार होती है। बाद में उन्होंने रंजकहीनता (albinism) तथा मानव के कई अन्य ऐसे ही आनुवंशिक रोगों का पता लगाया जो इसी प्रकार एकाकी उपापचयी अभिक्रियाओं की गड़बड़ियों के कारण होते हैं। सन् 1909 में उन्होंने इन रोगों का वर्णन अपनी पुस्तक, "उपापचय की जन्मजात त्रुटियाँ (Inborn Errors in Metabolism)" में किया। उन्होंने अनुमान लगाया कि उपापचयी अभिक्रियाओं की ये गड़बड़ियाँ इन्हें उत्प्रेरित करने वाले एन्जाइमों (enzymes) अर्थात् क्रियात्मक प्रोटीन्स के त्रुटिपूर्ण होने के कारण होती हैं। इस प्रकार, गैरोड (Garrod) की खोज से सर्वप्रथम प्रमाणित हुआ कि आनुवंशिक लक्षणों के दृश्यरूप प्रकटन का भीतिक आधार प्रोटीन्स होती हैं।


टी० एच० मॉर्गन (Morgan, 1910) ने फल मक्खी (fruit fly - Drosophila melanogaster) पर किए गए अपने प्रयोगों के आधार पर "वंशागति का जीन मत" प्रस्तुत किया। इसका वर्णन अध्याय 21 पृष्ठ 847 पर किया जा चुका है। सन् 1941 में न्यूरोस्पोरा (Neurospora) नामक एककोशिकीय कवक अर्थात् फफूँदी (fungus) पर किए गए अपने प्रयोगों द्वारा वीडल एवं टैटम (Beadle and Tatum) ने सिद्ध किया कि प्रत्येक जीन में एक निर्दिष्ट एन्जाइमी प्रोटीन (enzymatic protein) के संश्लेषण का संदेश होता है। इसी आधार पर उन्होंने अपनी "एक जीन एक एन्जाइम (one) gene one enzyme)" की परिकल्पना प्रस्तुत की और इसके लिए सन् 1958 का नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) पाया। बाद में पता लगा कि एक जीन में केवल एक ही पोलीपेप्टाइड श्रृंखला के संश्लेषण का संदेश होता है और इसे जीन प्ररूप (genotype) कहते हैं। इसके विपरीत, अधिकांश एन्जाइमों के अणु एक से अधिक पोलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं के बने होते हैं। तब बीडल एवं टैटस की एक जीन एक एन्जाइम (one gene one enzyme) परिकल्पना को "एक जीन एक पोलीपेप्टाइड (one geneone polypeptide)" परिकल्पना में बदल दिया गया।

डी एन ए के लिप्यन्तरण (अनुलिपिकरण) द्वारा आर एन ए अणुओं का संश्लेषण (Synthesis of RNA Molecules by DNA Transcription)

RNA के अणुओं का संश्लेषण DNA अणुओं के जीन्स (genes) पर इन्हीं की अनुपूरक (complementary) प्रतिलेखनियों (transcripts) के रूप में होता है, अर्थात् इस प्रक्रिया में DNA अणुओं की ATGC लिपि में आबद्ध संदेशों का RNA अणुओं

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