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योनि की संरचना।

 योनि की संरचना। STRUCTURE OF VAGINA

यह मूत्राशय एवं मलाशय के बीच में स्थित लगभग 7.5 से 10 सेमी लम्बी और अत्यधिक प्रसार्य, अर्थात् सिकुड़ने फैलने वाली वह नाल होती है जिसमें मैथुन के समय पुरुष का लिंग घुसता है। यह रजोधर्म स्राव (menstrual flow) तथा प्रसव के मार्ग का भी काम करती है। इसके ऊपरी भाग में इसकी दीवार तथा गर्भाशय की ग्रीवा के बीच सँकरा रिक्त स्थान होता है जिसे चापिका (fornix) कहते हैं। इसकी तन्तुपेशीय (fibromuscular) दीवार के भीतरी स्तर, अर्थात् श्लेष्मिका में प्रचुर अनुप्रस्थ भंज (transverse folds) होते हैं जिन्हें शिकनें या बलियाँ (rugae) कहते हैं। श्लेष्मिका की श्लेष्मिक कला किरैटिनरहित (nonkeratinized) स्तृत शल्की एपिथीलियम (stratified squamous epithelium) होती है। श्लेष्मिका के संयोजी ऊतक स्तर अर्थात् आधार पटल में तथा श्लेष्मिक कला की कोशिकाओं में ग्लाइकोजन का प्रचुर भण्डारण होता है। गर्भाशय की ग्रीवा की स्त्रावी कोशिकाओं द्वारा स्रावित श्लेष्म योनि की दीवार पर फैला रहता है। योनि में उपस्थित कुछ जीवाणुओं (bacteria), विशेषतः लैक्टोबैसिलाइ (Lactobacilli), द्वारा ग्लाइकोजन के अपघटन से कार्बनिक अम्ल बनते हैं जो श्लेष्म को अम्लीय बना देते हैं। योनि की इस अम्लीयता से रोगाणुओं के आक्रमण का खतरा कम रहता है, परन्तु यह शुक्राणुओं (sperms) के लिए भी हानिकारक होती है। वीर्य का क्षारीय अंण, मैथुन के समय इस अम्लीयता को समाप्त करता है। सामने की ओर दोनों टाँगों के बीच स्थित योनिछिद्र (vagina orifice) द्वारा योनि बाहर खुलती है।

भग की संरचना STRUCTURE OF VULVA OR PUDENDUM

में योनिधि से सम्बन्धित कई बाह्य जननांग (external genitalia) होते हैं। भग इन्हीं का सम्मिलित नाम होता। है। इसमें निम्नलिखित अंग होते हैं। 

1. जधन उत्थान (Mons Pubis) – यह भग का सबसे ऊपरी भाग होता है, जो अधस्त्वचीय (subcutaneous) वसीय ऊतक की प्रचुरता के कारण, कोमल गद्दी की भाँति फूला रहता है। यौवनारम्भ (puberty) पर इसके ऊपर की त्वचा रोमयुक्त हो जाती है। रोमों को जघन रोम (pubic hairs) कहते हैं। ये अपेक्षाकृत कड़े होते हैं।

2. दीर्घ ओष्ठ (Labin Majoru) में त्वचा के दो मोटे व बड़े भंग होते हैं जो जघन उत्थान से भग के निचले छोर तक इधर-उधर एक-एक फैले रहते हैं। इनकी बाहरी सतह की त्वचा में बाल होते हैं। अधस्त्वचीय वसा के अतिरिक्त, इनकी

त्वचा में तेल (sebaceous) तथा वेद (sweat) ग्रन्थियों की प्रचुरता होती है। ये पुरुष के वृषण कोष के समजात होते हैं। 

3. लघु ओष्ठ (Labis Minorn)—ये दीर्घ ओष्ठों में योनिधिद्र की ओर लगे एक-एक अपेक्षाकृत छोटे और पतले ओष्ठ होते हैं। इन पर बाल नहीं होते। अधस्त्वचीय वसा भी नहीं होती। व में स्वेद प्रत्थियाँ बहुत कम, परन्तु तेल ग्रन्थियों अधिक होती है।

4. प्रकोष्ठ (Vestibule)—यह लघु औष्ठों से घिरा बीच में एक छोटा-सा तर्कुरूपी (spindle-shaped) क्षेत्र होता है। इसके अधिकांश भाग में योनिधि फैला होता है। कुमारियों में यौनिछिद्र का अधिकांश भाग एक परिधीय झिल्ली द्वारा होता है जिसे हाइमन (hymen) कहते हैं। प्रकोष्ठ के निचले भाग में इधर-उधर स्थित, दो लम्बवत् उत्थानशील (erectile)) पिण्ड प्रकोष्ठ कन्द (bulb of vestibule) बनाते हैं। मैथुनेच्छा के समय इन पिण्डों में रुधिर भर जाता है जिसके कारण फूलकर ये योनिधिद्ध को संकुचित कर देते हैं। इससे मैथुन के समय पुरुष के लिंग पर दबाव पड़ता है। योनिछिद्र से ऊपर की ओर, प्रकोष्ठ में मूत्रमार्ग का छिद्र (urethral orifice) होता है। यहाँ मूत्रमार्ग की दीवार में श्लेष्म का त्रावण करने वाली ग्रन्थियों होती है। इसी प्रकार, योनिधिद्र के इधर-उधर भी श्लेष्म का स्रावण करने वाली बार्थोलिन की ग्रन्थियों या प्राण ग्रन्थियों (Bartholin's glands or vestibular glands) होती हैं। इन सब ग्रन्थियों द्वारा स्रावित श्लेष्म मैथुन के समय स्नेहक (lubricant) का काम करता है।

5. भगशिश्न (Clitoris)—यह प्रकोष्ठ के सबसे ऊपरी भाग में, जहाँ लघु ओष्ठ मिलते हैं, एक छोटा-सा बेलनाकार और उत्थानशील (erectile) अंग होता है। यह संरचना में पुरुष के लिंग के समजात तथा उसी प्रकार उत्तेजनशील होता है। मूलाधार (Perineum)—पुरुषों तथा स्त्रियों में बाह्य जननांगों तथा गुदा (anus) के बीच के मध्यवर्ती क्षेत्र को मूलाधार कहते हैं।

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