वृषणों की संरचना। STRUCTURE OF TESTES
मानव में प्रत्येक वृषण लगभग 5 सेमी लम्बा और 2.5 सेमी मोटा, गुलाबी-सा और अण्डाकार होता है। इसका भार लगभग 10 से 15 ग्राम होता है। यह एक मोटे द्विस्तरीय वृषण खोल या सम्पुट (testicular capsule) से ढका होता है। सम्पुट का बाहरी स्तर महीन होता है। इसे यौनिक स्तर (tunica vagina) कहते हैं। यह उदरगुहा के उदरावरण (peritoneum) से ही उस समय व्युत्पन्न (derive) होता है जब वृषण उदरगुहा से नीचे अण्डकोष में उतरता है। यह पूरे वृषण के चारों ओर न होकर अधूरा ही होता है। इसके नीचे सघन श्वेत तन्तुओं के बने संयोजी ऊतक का मोटा स्तर होता है जिसे श्वेतकंचुक अर्थात् ऐल्बूजीनिया स्तर (tunica albuginea) कहते हैं। यह पूरे वृषण पर फैला होता है (चित्र 19.5A)। इससे निकली अधूरी वृषण पट्टियाँ (septula testis) नृपण में भीतर थैंसकर इसके ऊतक को लगभग 200 से 400 शंक्वाकार (cone shaped) पिण्डको (lobules) में बाँट देती है। प्रत्येक पिण्डक के ढीले से संयोजी ऊतक में एक, दो या तीन महीन एवं अत्यधिक कुण्डलित शुक्रजन नलिकाएँ (seminiferous tubules) फैली होती हैं। इन्हीं नलिकाओं में शुक्रजनन (spermatogenesis) नामक प्रक्रिया द्वारा नर जनन कोशिकाएँ अर्थात् शुक्राणु (sperms) बनते हैं। शुक्रजन नलिकाओं के अतिरिक्त, पिण्डक के ऊतक में रुधिर केशिकाएँ, तन्त्रिका तन्तु तथा अन्तःस्रावी (endocrine) कोशिकाओं के अनेक छोटे-छोटे समूह होते हैं। अन्तःस्रावी कोशिकाओं को अन्तराल कोशिकाएँ (interstitial cells) या लेडिंग की कोशिकाएँ (cells of Leydig) कहते हैं। ये नर हारमोन्स (male hormones) का स्रावण करती हैं जो पुरुष की सहायक जनन ग्रन्थियों (accessory reproductive glands) तथा द्वितीयक लैंगिक लक्षणों (secondary sexual characters) के विकास को प्रेरित करते हैं।
प्रत्येक शुक्रजन नलिका के चारों ओर संयोजी ऊतक की बनी आधारकला (basement membrane or tunicat propria) होती है। इसी कला पर भीतर की ओर नलिका की उत्पादक या जननिक एपिबीलियम (germinal epithelium) सधी होती है। इस एपिथीलियम में दो प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं— शुक्राणु (sperms) बनाने वाली शुक्रजन कोशिकाएँ या स्थरमैटोगोनिया (spermatogonia) तथा इन्हें सहारा देने वाली अवलम्बन (supporting) कोशिकाएँ। शुक्रजनन (sperma togenesis) की प्रक्रिया में शुकजन कोशिकाओं के बारम्बार के विभाजनों के कारण इन कोशिकाओं के कई स्तर बने रहते हैं। बाहर की ओर से गुहा की ओर इन स्तरों की कोशिकाओं को क्रमशः प्राथमिक शुक्र कोशिकाएँ (primary spermatocytes), द्वितीयक शुक्रकोशिकाएँ (secondary spermatocytes) तथा पूर्वशुक्राणु कोशिकाएँ (spermatids) कहते हैं।
अवलम्बन कोशिकाएँ संख्या में बहुत कम, परन्तु बड़ी-बड़ी और स्तम्भी होती हैं। इन्हें उपचारक या सरटोली की कोशिकाएँ (nurse cells, or cells of Sertoli, or subtentacular cells) कहते हैं। इनका स्वतन्त्र तल सपाट न होकर गतों में बँटा होता है। पूर्वशुक्राणु कोशिकाएँ (spermatids) इन गतों में धँसकर शुक्राणुओं (sperms) में बदलती रहती हैं (चित्र 19.5 B)। विकासशील जननिक कोशिकाओं को अवलम्बन, सुरक्षा तथा पोषण प्रदान करने के अतिरिक्त, सरटोली की कोशिकाएँ पूर्वशुक्राणु कोशिकाओं के निरर्थक कोशिकाद्रव्य का विघटन करती तथा एक इन्हिबिन (inhibin) नामक प्रोटीन हॉरमोन का स्रावण करती हैं जो शुक्राणुओं के उत्पादन को प्रेरित करने वाले अन्य हॉरमोनों के प्रभाव का नियमन करता है।
शुक्रजन नलिकाएँ (seminiferous tubules) वृषण की सतह के पास से प्रारम्भ होकर इसके पश्च भाग के मध्यवर्ती क्षेत्र की ओर बढ़ती हैं और कम कुण्डलित होती जाती है। अन्त में इस क्षेत्र तक पहुँचते-पहुँचते ये सीधी होकर इस क्षेत्र में स्थितः छोटी-छोटी नलिकाओं के एक घने जाल में खुल जाती हैं। इस जाल को वृषण जालक (rete testis) कहते हैं। वृषण जालक से कई अपवाहक नलिकाएँ (efferent ductules or vasa efferentia) निकलती हैं और वृषण की पश्च सतह पर पहुँचकर एक ही अत्यधिक लम्बी अधिवृषण अर्थात् एपिडिडाइमिस नलिका (ductus epididymis) में खुल जाती हैं। वाहक नलिकाओं की दीवार में भीतर रोमाभि स्तम्भी कोशिकाओं की इकहरी एपिथीलियम का तथा बाहर वर्तुल (circular) पेशियों का महीन स्तर होता है।