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आकलन योजना बनाना

आकलन योजना बनाना

इस खण्ड के तहत आकलन योजना कैसे बनाई जाए कि उसमें शिक्षकों को निश्चित सफलता मिले पर चर्चा की जाएगी। शिक्षक विषय निर्देशों से पहले प्रत्येक अध्याय के लिए एक आकलन योजना तैयार कर सकते हैं। इसमें शिक्षक द्वारा विद्यार्थियों के अधिगम को मापने में प्रयोग किए गए औपचारिक व अनौपचारिक आकलन का वर्णन शामिल है, जो विद्यार्थियों की विषय संबंधी समझ, कौशल और किस प्रकार की प्रतिपुष्टी प्रदान की जाए को दर्शाएगा। इसमें विशेष शैक्षिक आवश्यकता वाले विद्यार्थियों के लिए प्रस्तावित योजना और वे कैसे इनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करेंगी का भी वर्णन किया जा सकता है। यहां आकलन योजना के मुख्यत: चरणों की चर्चा के साथ साथ सभी सामाजिक विज्ञान विषयों में आर्दश आकलन योजना की चर्चा की गई हैं।

पद1 - प्रत्येक इकाई जिसे आप कक्षा में पढ़ाने जा रहे हैं उसके अधिगम उद्देश्य/ संभावित अधिगम निष्कर्ष की सूची तैयार करें।

पद २- उन गतिविधियों अथवा कार्यों को ज्ञात किजिए जो आपको अधिगम उद्देश्यों को प्राप्त करने के स्तर का प्रमाण दें। ऐसे साक्षों की सूची तैयार करें जो गतिविधियों/कार्यों को संचालित करने के दौरान आकलन को विश्वसनीय व वैद्य बनाने के लिए आपको इक्कठे करने है।

पद ३- शिक्षण-आकलन-अधिगम प्रक्रिया की योजना में समय प्रबंधन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शिक्षक किसी विषय को गतिविधियों सहित पढ़ाए जाने में लगने वाले समय के हिसाब से योजना बना सकते हैं। योजना बनाते समय वे उपचारी/संवर्धन में लगने वाले समय का भी ध्यान रख सकते हैं। मूल्यांकन कार्य की योजना इस तरह बनाई जानी चाहिए कि उससे अध्यापन में अवरोध न हो, बल्कि इससे अध्ययन अध्यापन प्रक्रिया में निरंतर प्रतिपुष्टि हो।

पद ४-प्रयोजित मूल्यांकन कार्य की समीक्षा करें और पता लगाये कि क्या आप सीखने के सभी संभावित परिणामों और आकलन करने में सक्षम हैं।

पद 5 -सूची के आधार पर इकट्ठे किए जाने वाले सबूतों को उचित तरीके से इकट्ठा करें व उनको प्रत्येक विद्यार्थी के पोर्टफोलियों में आत्म मूल्यांकन रिपोर्ट के साथ जगह दें।

पद 6 - एक विस्तृत आलेख पत्र तैयार करें जो संभावित सीखने के परिणामों और स्तर का स्पष्ट संकेत प्रदान करें व शिक्षण अधिगम प्रकिया के दौरान की गई टिप्पणीयों और इकट्ठे किए गए प्रमाणों के आधार के तरीके सुझाए। यह सब विद्यार्थियों के साथ और प्रत्येक तिमाही के अंत में माता-पिता/अभिभावकों के पोर्टफोलियो के साथ सांझा किया जाना चाहिए।

 आकलन योजना

विषय-वस्तु/प्रसंग

आकलन को एकीकृत करके अध्यापन के साथ जोड़ने की आवश्यकता है। अगर यह कार्यों अथवा प्रश्नों पर आधारित है तो यह सीखने को बढ़ावा नहीं देता, साथ ही निर्देशों के मुख्य लक्ष्य से भी भटकता है। यदि यह विद्यार्थियों को उन वस्तुओं/विषयों को सीखने में आपेक्षित रूप से व्यस्त न कर सके, तो यह निरर्थक है। इसलिए, आकलन योजना किसी विषय - वस्तु के सीखने प्रसंग पर केंद्रित होना चाहिए। शिक्षक को विषय-क्षेत्र स्तर और विषय-वस्तु के सीखने के अनुक्रम के बारे में ज्ञान होना आवश्यक है जिससे वह विद्यार्थियों को सीखने की प्रक्रिया में तय स्तर तक पहुँचने में मदद कर सके, साथ ही वह उनकी प्रगति के लिए उपचारात्मक उपायों को जान सके।

आकलन योजना में अधिगम का उद्देश्य, ज्ञान और उसकी रूपरेखा विद्यार्थियों की वैचारिक सकंल्पनात्मक समझ को जाँचने वाली और लक्ष्य प्राप्ति के उद्देश्यों को परिलक्षित करने वाली होनी चाहिए। आकलन की रणनीति के केन्द्रीय विचारों में विद्यार्थी की वैचारिक संकलपनात्मक समझ, चुनौतियों को हल करने की क्षमताएँ और तर्क सूत्रबद्धता के विकास की ओर होनी चाहिए। 

उदाहरण

विषय-वस्तु/प्रसंग

अधिगम के उद्देश्य सुझाई गई आकलन गतिविधियाँ क्षमताएँ आकलन कैसे किया जाए 
निष्कार्ष/परिणाम उन गतिविधियों व कार्यों को लिखिए जिनका आकलन हेतु उपयोग किया जाएगा यह अधिगम के प्रमाणों को प्रदर्शित करेगा सूचक जिन का आकलन किया जाना है आकलन के विभिन्न तरीकों में सूचकों के आधार पर शिक्षकआकलन के समय कुछ मापदण्डक बना सकते है

 रिपोर्ट तैयार करना 

शिक्षकों को आकलन के परिणामों से शिक्षकों, विद्यालय प्रमुखों, अन्य अधिकारियों, अभिभावकों और स्वयं शिक्षार्थियों को भी अवगत कराना होता है। मूल्यांकन की यह रिपोर्ट सदैव मानदंडों के संदर्भ में होनी चाहिए जिससे यह पता चल सकेगा कि अधिगम के विभिन्न उद्देश्यों के अंतर्गत विद्यार्थी ने किस तरह की और कितनी प्रगति की है। माता-पिता यह जानने में उत्सुक रहते हैं कि उनके बच्चे स्कूल में कैसा प्रदर्शन कर रहे है। प्रत्येक 3-4 माह के बाद शिक्षक सतत मूल्यांकन के आधार पर बच्चों की पढ़ाई के स्तर के विषय में माता-पिता को अवगत करा सकते है। इससे उनको अपने बच्चे की प्रगति का पता चलेगा, इस ज्ञान के आधार पर माता-पिता स्कूल में बच्चे की पढ़ाई के दौरान उसकी मदद कर सकते हैं ताकि वो उचित स्तर को प्राप्त कर सकें। साथ ही साथ उन्हें यह मौका भी मिलेगा कि वे समय रहते पढ़ाई के दौरान विद्यार्थी की पढ़ाई में उसकी मदद कर सकेंगे। किसी भी गतिविधि अथवा परियोजना की समाप्ति के तुरंत बाद ही विद्यार्थी को नियमित रूप से रिपोर्ट देने से उन्हें यह जानने में मदद मिलेगी कि उनका स्तर क्या है और उन्हें क्या प्राप्त करना है। इस रिपोर्ट में विशेष सुझाव भी दिए जाने चाहिए कि किस प्रकार उनमें सुधार लाया जा सकता है। 

क्या प्रतिवेदन करना है

 अपेक्षित उद्देश्यों को प्राप्त करने की दिशा में विद्यार्थियों के संदर्भ में क्या चीज़ काम कर रही है और क्या नहीं,इस विषय में विस्तृत (पृष्ट पोषण) की आवश्यकता है। इस तरह की सुस्पष्ट, समझने में आसान प्रति पुष्टि जो अध्यापक के अपेक्षित परिणामों को ध्यान में रखकर तैयार की गई हो शिक्षर्थियों के साथ-साथ माता-पिता को भी प्रदान की जानी चाहिए। प्रतिवेदन में निम्नलिखित बातें शामिल होनी चाहिए.। 

अधिगम के प्रमाण  प्राप्त की गई क्षमताओं का स्तर सुधार हेतु सुझाव
 उन गतिविधियों औरकार्यों को बताएँ जिनका मूल्यांकन हेतू और पोर्टफोलियो दिखानेके लिए किया गया हो अपेक्षित उद्देश्यों और अधिगम के प्रमाण को ध्यान में रखने हेतू हए प्रत्येक विद्यार्थी की प्रगति बताएँ।  विद्यार्थी की क्षमता के साथ यह भी बताएँ कि सुधार और समृद्धिकरण के लिए और क्या किया जा सकता है (अवधारणाएँ के सही तरीके से निर्माण एवं कौशलों को और मिथ्य अवधारणा को दूर करने के लिए) 

यह एक विस्तृत छवि प्रस्तुत करेगी जहाँ विद्यार्थी संभावित सीखने के परिणामों और शिक्षक अंतत: उन्हें सिखाने से संबंधित हैं। वास्तविक लक्ष्य विद्यार्थियों को प्रोत्साहन व सीखने के लिए बढ़ावा देना है, जिसके लिए एक सकारात्मक प्रतिपुष्टि की आवश्यकता है। इससे यह भी ज्ञात होगा कि वर्तमान में उनमें क्या सामर्थ्य है एवं उसे और सशक्त कैसे बनाया जाए। 

सी.सी.ई. के कार्यान्वयन में चुनौतियाँ कक्षा में बच्चों की अधिक संख्या

 सी.सी.ई. कार्यान्वयन की दिशा में एक प्रमुख चुनौती एक कक्षा में बच्चों की अधिक संख्या का होता है। ऐसी स्थिति में शिक्षक के लिए विविध गतिविधियों का संचालन और साथ ही साथ उसका आकलन मुश्किल हो जाता है। अध्यापक को जैसे ही सभी अधिगमकर्ताओं की प्रगति चिन्हित और उनको लिपिबद्ध करने की जरूरत पड़ेगी तो उनका कार्यभार बढ़ जाएगा। शिक्षा के अधिकार अधिनियम के कार्यान्वयन तहत सुझाए गए 1:35 शिक्षक छात्र अनुपात से उच्च प्राथमिक स्तर पर बड़े आकार की ऐसी कक्षाओं की समस्या कुछ हद तक कम हो सकती है। हालाँकि जैसा कि इस पैकेज में वर्णित है सभी गतिविधियों के दौरान सभी बच्चों का आकलन करने की आवश्यकता नहीं है। शिक्षक को एक अवधि के दौरान यह आकलन करना है।

समय प्रबंधन

सतत मूल्यांकन को निश्चित तौर पर शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया के साथ एकीकृत किया जाना चाहिए। यदि शिक्षक शिक्षण और आकलन की प्रक्रिया अलग-अलग चलाते हैं तो इसकी वजह से बहुत समय नष्ट हो जाता है। यदि इन मूल्यांकन विधियों को कक्षा की दिनचर्या से एकीकृत कर दिया जाए तब इस तरह के मूल्यांकन मुश्किल नहीं लगते और न ही वे पढ़ाई का अनावश्यक समय ही नष्ट करते है। यदि इन सबसे जो अनुभव शिक्षक को प्राप्त होता है या यदि इससे उन्हें विद्यार्थियों के साथ और प्रभावी ढंग से काम करने में मदद मिलती है तो ऐसी विविध मूल्यांकन विधियों में लगाया जाने वाला समय उपयुक्त है।

छात्र अनुपस्थिति

उपस्थिति में अनियमितता छात्र-छात्रओं के सुचारू प्रदर्शन के प्रबन्धन में एक बड़ी बाधा है। कई बार चुनौतीपूर्ण कार्य के डर से भी अनुपस्थिति में बढ़त देखने को मिलती है। कुछ विद्यार्थी अत्यधिक निगरानी के डर से भी स्कूल छोड़ सकते है। इसे दर करने का एक उपाय यह हो सकता है कि शिक्षक चुनौतीपूर्ण कार्य को सभी के लिए अनिवार्य न करें, साथ ही शिक्षकों को सीखने के अपेक्षित परिणामों और हर तरह के शिक्षार्थियों को ध्यान में रखते हुए मूल्यांकन की गतिविधियाँ बनानी चाहिए। ऐसे में शिक्षार्थी मूल्यांकन गतिविधियों में आनंद लेना शुरू कर देंगे और उन्हें यह पता भी नहीं चलेगा कि उनका मूल्यांकन हो रहा है। यह उन्हें बोझ के बिना ही सीखने के लिए प्रेरित तो करेगा ही साथ ही साथ उनमें कक्षा में आने के प्रति भी रूचि जागृत करेगा।

निगरानी और प्रतिक्रिया/सुझाव

शिक्षार्थियों के आकलन के परिणाम सामान्यतया शिक्षकों के आकलन व निगरानी के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। यही कारण है कि शिक्षक अक्सर शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया को समृद्ध करने के बजाए अधिकारियों की आवश्यकतानुसार मूल्यांकन उपकरणों का निर्माण, मूल्यांकन तथा रिकार्ड रखते हैं। इस प्रवृत्ति ने संकीर्ण निर्देश और शिक्षण को बढ़ावा देते हुए इसे केवल टेस्ट’ तक ही सीमित कर दिया है। इसका परिणाम यह हुआ है कि शिक्षक अपने शिक्षण में सुधार करने के बजाए अपना अधिकांश समय रिकार्ड सही तरीके से रखने में ही व्यय कर देते हैं ताकि वे एक बेहतर शिक्षक दिख सकें। शिक्षकों की निगरानी इस तरह होनी चाहिए कि सतत मूल्यांकन करने में आने वाली समस्याओं के समाधान के साथ ही उन्हें समुचित सहायता प्रदान की जा सकें। मूल्यांकन को विकास की एक ऐसी प्रक्रिया मानना चाहिए जिसमें शिक्षार्थियों की उपलब्धि के बजाए सुधार पर ज़ोर हो। मूल्यांकन इस तरह से होना चाहिए कि उससे शिक्षार्थियों के मज़बूत और कमज़ोर पक्षों की पहचान, उनकी समस्याओं के निदान तथा उनके मज़बूत पक्ष को और अधिक समृद्ध करने के तरीकों का निर्धारण किया जा सकें। 

3.5 शिक्षक प्रशिक्षक तथा ब्लॉक रिसोर्स/क्लस्टर रिसोर्स संयोजक की भूमिकाएँ 

अध्यापक प्रशिक्षक, शिक्षकों के व्यावसायिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सी.सी.ई. लागू करते समय, अध्यापक प्रशिक्षकों और बी.आर. सी./सी.आर.सी. कार्मियों को कुछ बिंदुओं जो अंततः शिक्षकों को अभिमुख करने तथा नियमित रूप से शिक्षण व सीखने की प्रक्रिया की निगरानी करते हैं, को ध्यान में रखना चाहिए। शिक्षकों एवं शिक्षक प्रशिक्षकों की व्यावसायिक शिक्षा शिक्षकों को तैयार करने के कार्यक्रमों का एक निरंतर और अभिन्न अंग होना चाहिए। इससे शिक्षकों को अपनी कार्य-प्रणाली दर्शाने और बच्चों की सीखने की प्रक्रिया में सुधार करने में महत्वपूर्ण मदद मिलेगी। शिक्षकों के लिए सेवाकालीन प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान रखा जाना चाहिए।

  •  प्रशिक्षण कार्यक्रम ‘ऊपर से नीचे' तरीके से आयोजित नहीं किए जाने चाहिए जिसमें शिक्षकों को प्रशिक्षकों द्वारा सी.सी.ई.के लिए विभिन्न तरीकों या रणनीतियों को लागू करने के लिए ही सुझाया जाता हो। शिक्षकों को इससे संबंधित विभिन्न बातें, उदाहरणों (कैसे करवाई) के जरिए समझाई जानी चाहिए ताकि उन्हें इस पर चर्चा करने, अपनी समस्याओं के बारे में सोचने तथा अन्य के साथ उसे साझा करने का अवसर मिल सकें।
  • प्रशिक्षण कार्यक्रम में ऐसी रणनीति अपनायी जानी चाहिए जिससे शिक्षकों को सी.सी.ई. से संबंधित विद्यालय में किए जाने वाले प्रयासों के बारे में अपने सहकर्मियों से विचार साझा करने व चर्चा करने का अवसर मिल सकें। इस प्रक्रिया से परस्पर और भागीदारी पूर्ण सीखने की प्रक्रिया को अवसर मिलेगा।
  • शिक्षक दुर्लभ इलाकों, विद्यार्थियों की अधिक संख्या वाली कक्षाओं तथा बहु-ग्रेड कक्षाओं आदि जैसी भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में काम कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में एक जैसे रिकार्डिंग और रिर्पोटिंग प्रारूप से सी.सी.ई. का उद्देश्य पूरा नहीं होगा। शिक्षकों के अनुभव यह दर्शाते हैं कि इस तरह के प्रारूप से शिक्षण व सीखने के समय को बर्बाद करते हैं तथा इससे सी.सी.ई. की प्रक्रिया में कोई मदद नहीं मिलती है।
  •  प्रशिक्षण कार्यक्रम शिक्षकों को विभिन्न विषयों को बच्चों के अनुभवों व परिवेश से जोड़ने में सक्षम बनाने वाला होना चाहिए। इसके अलावा कई बार भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों से ताल्लुक रखने वाले बच्चों को घर की भाषा व विद्यालय की भाषा में अंतर होने के कारण उत्तर देने में कठिनाई हो सकती है।

 प्रशासकों के लिए विस्तृत दिशा निर्देश

सी.सी.ई. के अंतर्गत शिक्षण और सीखना एक सतत प्रक्रिया है जो एक हद तक बच्चे, उसके सहपाठियों और शिक्षकों के सक्रिय अंतसम्पर्कों पर निर्भर करती है। शिक्षक एक ऐसा व्यक्ति है जो अधिकांश समय कक्षा में बच्चों के साथ बिताता है। इसलिए बच्चों के सीखने की आवश्यकताओं, स्तर और प्रगति के निर्णय के बारे में एक शिक्षक की केंद्रिय भूमिका होती है। अगर बच्चे के रचनात्मक मूल्यांकन के लिए कोई रिकार्ड रखने की ज़रूरत है, उससे संबंधित उचित रिकॉर्ड रखने का निर्णय अध्यापक पर होना चाहिए। कक्षा में की जाने वाले प्रत्येक और सभी गतिविधियों को रिकार्ड करना न केवल दुरूह व अव्यावहारिक है बल्कि इससे शिक्षण व सीखने की प्रक्रिया में भी कोई सहायता नहीं मिलती है। इस सब में यह आवश्यकता है कि शिक्षा अधिकारी, वरिष्ठ अधिकारी तथा निरीक्षक, शिक्षक की स्वायत्तता का आदर करें ताकि शिक्षकों को भी यह एहसास हो कि वे बच्चों की शिक्षा के लिए जिम्मेदार है तथा उनकी पढ़ाई की जिम्मेदारी लेने योग्य हैं। जहाँ शिक्षार्थियों और अध्यापकों को शिक्षण व सीखने-सिखाने की ज़िम्मेदारी दी गई वहाँ भी सी.सी.ई. तभी कारगर होगा जब शिक्षकों व विद्यार्थीयों को किसी प्रकार का भय न हो। यहाँ प्रशासक शिक्षकों को कक्षा में परिणाम की अपेक्षा उस परिणाम तक पहुँचने की प्रक्रिया और कक्षा में आपसी संवाद के मूल्यांकन पर अधिक ध्यान केंद्रित करने हेतु प्रोत्साहित कर सकते हैं।

  •  शिक्षण-सीखने की प्रक्रिया को सुदृढ़ करने के लिए प्रशासकों को शिक्षकों के साथ नियमित संवाद करते रहना चाहिए।
  •  सी.सी.ई. को लागू करने के लिए समय-सारणी में लचीलापन आवश्यक है। इससे शिक्षकों को प्रशिक्षण कार्यक्रम में सीखी गई विभिन्न तकनीकों का प्रयोग करके देखने में भी सहायता मिलेगी।
  • शिक्षकों को स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों का प्रयोग करने तथा कक्षा के बाहर से सीखने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
  • प्रशिक्षण कार्यक्रमों में प्राप्त अनुभवों को शिक्षकों को वरिष्ठ शिक्षकों तथा अन्य शिक्षाकर्मियों (बी.आर.सी.) से साझा करने के अवसर दिए जा सकते है। इस प्रक्रिया से उन्हें भी अपने ज्ञान को अद्यतन करने तथा विभिन्न विषयों में किए गए परिवर्तनों (शिक्षा शास्त्रीय बदलावों) के मूल उद्देश्यों की समझ बनाने में मदद मिलेगी।
  •  शिक्षकों को बच्चों की जरूरतों के हिसाब से पाठ्यक्रम का उपयोग करने की स्वायत्तता दी जानी चाहिए। उदाहरण के लिए अधिकांश विद्यालयों में शिक्षकों को विद्यालय की सलाह पर एक क्रम से पाठ पढ़ाने होते हैं।
  •  सी.सी.ई. पर नियोजकों और प्रशासकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन इसके प्रयोगकर्ताओं और प्रशासकों के बीच विचारों में सामंजस्य का विकास करने के लिए आवश्यक हैं। इससे उन्हें भी शिक्षण और सीखने की इस पूरी प्रक्रिया तथा इस प्रयास में उनकी अपनी भूमिका को समझने में मदद मिलेगी।
  • प्रशासक की भूमिका एक पर्यवेक्षक अथवा रिर्पोटिंग अधिकारी की नहीं होनी चाहिए। उसे विद्यालयों में सीखने की स्थितियाँ पैदा करने के साथ-साथ एक मार्गदर्शक की भूमिका भी निभानी चाहिए।

स्त्राेत: पूर्व प्राथमिक शिक्षा के लिए दिशा-निर्देश,राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी), श्री अरविंदाे मार्ग, नई दिल्ली।

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