भाषा तथा व्याकरण
'भाषा' शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत की 'भाष' धातु से हुई है। इसका अर्थ बोलना या कहना होता है। भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम होती है। ध्वनि, शब्द, वाक्य और अर्थ भाषा के अवयव हैं। हम ध्वनि अथवा वर्ण तथा शब्दों के रूप में ही सम्प्रेषण को पूर्ण कर सकते हैं। सम्प्रेषण की प्रक्रिया में शब्दों का अर्थ मूल रूप से सम्प्रेष्य होता है। इस प्रकार अभिव्यक्ति, सम्प्रेषण तथा अर्थ भाषा के व्यक्त रूप हैं। वस्तुतः भाषा वह माध्यम है जिसके द्वारा मनुष्य अपने भावों, विचारों तथा प्रवृत्तियों को सम्प्रेषित कर सकता है।
'ध्वनि' भाषा की सबसे छोटी इकाई है। इसे 'वर्ण' भी कहते हैं। वर्ण का अपना कोई अर्थ नहीं होता। वर्णों के मेल (संयोग) से जिस सार्थक वर्ण-समूह या ध्वनि समूह की सृष्टि होती है, उसे 'शब्द' कहते हैं। शब्द और अर्थ का घनिष्ठ सम्बन्ध है। शब्द अर्थ से पृथक नहीं रह सकता है। अर्थ के अभाव में कोई भी शब्द निरर्थक ध्वनियों का समूह मात्र रह जाता है।
कामता प्रसाद गुरु के अनुसार भाषा वह साधन है जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचार दूसरों तक भली-भाँति प्रकट कर सकता है तथा दूसरों के विचारों को भी स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है। भाषा का यह रूप उच्चारण तथा लिपि के माध्यम से सम्प्रेषित होता है। उच्चारण ध्वनि संकेत है, जो शारीरिक अवयवों के माध्यम से व्यक्त होता है। लिपि वह ध्वनि संकेत है जिसके द्वारा भाषा का प्रसार तथा संरक्षण सम्भव है। हिन्दी भाषा देवनागरी लिपि में लिखी जाती है, जबकि यूरोपीय भाषाओं को रोमन अथवा ग्रीक लिपि में लिखा जाता है। भाषा वाक्य से स्वरूप ग्रहण करती है। वाक्य शब्दों से रूप ग्रहण करते हैं। वाक्य शब्द, ध्वनि तथा अर्थ द्वारा भाषा के भाषिक स्वरूप को सामने लाने का कार्य करता है।
भारत में भाषा के तीन रूप विद्यमान हैं—
1. क्षेत्रीय बोलियाँ
2. परिनिष्ठित भाषा तथा
3. राष्ट्रभाषा ।
स्थानीय सम्प्रेषण में भारत के विभिन्न क्षेत्रों में बोलियाँ बोली जाती हैं। भारत में 436 बोलियाँ अस्तित्व में हैं। कुछ बोलियों ने अपनी व्यापकता और साहित्यिक चेतना के कारण परिनिष्ठित भाषा का रूप लिया है। इसके इस रूप में आने की प्रकिया में व्याकरण का महत्तम सहयोग रहा है। हिन्दी एक परिनिष्ठित भाषा है। यह खड़ी बोली का परिनिष्ठित रूप है जिसने 10वीं शताब्दी के बाद अपना रूप ग्रहण प्रारम्भ किया। हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा और राजभाषा है। इसके अन्तर्गत उत्तर भारत की बोलियाँ आती हैं, जो 'हिन्दी की बोलियाँ' कही जाती हैं। हिन्दी भाषा का विकास
हिन्दी को संस्कृत अथवा प्राकृत से निष्पण्ण माना जाता है। राहुल सांकृत्यायन ने हिन्दी को संस्कृत या प्राकृत से निष्पण्ण मानने पर प्रश्न
किया है, उनके अनुसार हिन्दी की बोलियाँ संस्कृत समानान्तर लोक बोलियों में प्रचलित थीं, जो समय पाकर भाषा के रूप में अस्तित्व ग्रहण करने में सफल रहीं।
हिन्दी का विकास आधुनिक आर्यभाषाओं के प्रभाव में हुआ। खड़ी बोली शौरसेनी अपभ्रंश से निष्पण्ण हुई थी। यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा के वृहत क्षेत्र में बोली जाती थी। मुसलमानों के शासन प्रारम्भ करने के दौरान उन्हें एक ऐसी समग्र भारतीय भाषा की जरूरत महसूस हुई, जिसमें वह स्थानीय किसानों, व्यापारियों तथा अधिकारियों से सम्बन्ध कायम कर सकें। खड़ी बोली दिल्ली के आस-पास बोली जाने के कारण विकसित होने लगी। शासकीय संरक्षण पाकर इसका विकास हुआ। मुस्लिम रचनाकारों जिनमें अमीर खुसरो ने इस भाषा में रचनाएँ की तथा इसे 'हिन्दवी' कहा। यही 'हिन्दवी' कबीर, सूर तथा तुलसी की वाणी से मिलकर 'हिन्दी' हो गई। 'हिन्दवी' अथवा हिन्दी में खड़ी बोली के साथ ब्रजभाषा, अवधी, राजस्थानी आदि के शब्दों तथा रूपों का प्रयोग हुआ, जिसने क्रमशः हिन्दी को विकसित किया।
ऐतिहासिक तथा भौगोलिक दृष्टि से हिन्दी की पाँच उपभाषाएँ हैं। ये हैं—राजस्थानी हिन्दी, पश्चिमी हिन्दी, पूर्वी हिन्दी, बिहारी हिन्दी तथा पहाड़ी हिन्दी। इसके विस्तार तथा अन्तर्निहित बोलियों को इस सारणी द्वारा समझा जा सकता है।
भाषा परिवर्तनशील एवं विकासोन्मुख होती है। भाषा के विकसित स्वरूप के दौर में साहित्यिक रचनाएँ होती है। तब साहित्यिक भाषा का व्याकरणिक स्वरूप निर्धारित करना अनिवार्य हो जाता है।
व्याकरण वह रूप है जिसके द्वारा भाषा का विश्लेषण तथा उसके मानक रूप को स्थिर किया जाता है। किसी भाषा के बोलने तथा लिखने के नियमों की व्यवस्थित पद्धति 'व्याकरण' कहलाती है। इसके द्वारा शब्दों के रूपों तथा प्रयोगों को निरूपित किया जाता है। यह भाषा को शुद्ध लिखने, उच्चारण करने तथा समझने का ज्ञान भी प्रदान करता है।
हिन्दी-व्याकरण संस्कृत-व्याकरण पर आधारित है, लेकिन इसे स्वतन्त्र मानना अधिक समीचीन है क्योंकि इसकी विशेषताएँ संस्कृत से अत्यधिक पृथक होने की प्रवृत्ति सामने लाती हैं। कामता प्रसाद गुरु तथा किशोरीदास वाजपेयी ने सबसे पहले हिन्दी व्याकरण को लिख हिन्दी भाषा को स्थिर तथा परिष्कृत करने का प्रयास किया। हिन्दी व्याकरण में तीन तत्त्वों के आधार पर अध्ययन की प्रकिया को स्वरूप प्रदान किया जाता है। ये हैं—वर्ण विचार, ध्वनि विचार तथा वाक्य विचार।