शिक्षण अभिक्षमता|Teaching Aptitude
सीखने के उद्देश्य
01. शिक्षण:- अवधारणाएं, उद्देश्य, शिक्षण का स्तर (स्मरण शक्ति, समझ और विचारात्मक), विशेषताएँ और मूल अपेक्षाएं।
02. शिक्षार्थी की विशेषताएँ:- किशोर और वयस्क शिक्षार्थी की अपेक्षाएं (शैक्षिक, सामाजिक, भावनात्मक और संज्ञानात्मक, व्यक्तिगत भिन्नताएँ)
03. शिक्षण प्रभावक तत्व:- शिक्षक, सहायक सामग्री, संस्थागत सुविधाएं, शैक्षिक वातावरण।
04. उच्च अधिगम संस्थाओं में शिक्षण की पद्धतिः अध्यापक केंद्रित बनाम शिक्षार्थी केंद्रित पद्धति, ऑफ लाइन बनाम ऑन-लाइन पद्धतियां (स्वयं, स्वयंप्रभा, मूक्स इत्यादि) ।
05. शिक्षण सहायक प्रणाली:- परंपरागत आधुनिक और आई सी टी आधारित।
06. मूल्यांकन प्रणालियां:- मूल्यांकन के तत्व और प्रकार, उच्च शिक्षा में विकल्प आधारित क्रेडिट प्रणाली में मूल्यांकन, कंप्यूटर आधारित परीक्षा, मूल्यांकन पद्धतियों में नवाचार।
शिक्षण अभिक्षमता। Teaching Aptitude
एक राष्ट्र की प्रगति और समृद्धि मानव संसाधनों के विकास पर निर्भर करती है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सक्षम शिक्षकों की सदैव आवश्यकता रहती है। राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (National Eligibility Test) उन अभ्यर्थियों के मूल्यांकन के लिए है, जो अपने ज्ञान और कौशल के आधार पर उच्च शिक्षण संस्थानों में अध्यापन वृतिया अनुसन्धान में प्रवेश पाना चाहते हैं।
किसी उच्च शिक्षण संस्थान में सफल शिक्षक बनने हेतु योग्यता, बुद्धिमत्ता, मनोदृष्टि, आदि वांछित गुण होने चाहिए। इस बात को ध्यान में रखते हुए पहले अध्याय 'शिक्षण अभिक्षमता' के पाठ्यक्रम में शिक्षण अवधारणाओं, शिक्षण उद्देश्यों, शिक्षण विधियों, और शिक्षण सहायक सामग्री को सम्मिलित किया गया है।
शिक्षा और शिक्षण। Education and Teaching
शिक्षण का मूल अर्थ है शिक्षा प्रदान करना हम पहले यह जान लें कि शिक्षा क्या है। इस शब्द की उत्पत्ति 'शिक्ष' से हुई है, जिसका अर्थ है ज्ञान प्राप्त करना जिसके माध्यम से हम अपने संस्कारों एवं व्यवहारों का निर्माण करते हैं। शिक्षा हमें इस योग्य बनाती है कि हम अपने वातावरण में समायोजित होकर अपनी क्षमताओं एवं निहित योग्यताओं का पूर्ण विकास कर अपने परिवार, समाज तथा राष्ट्र के किसी विशिष्ट क्षेत्र में योगदान कर सके। शिक्षा का उद्देश्य शिष्य के ज्ञान एवं व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाना है। शिक्षा प्रदान करने वाले को शिक्षक, अध्यापक या अध्येता कहा जाता है। शिक्षक मूलतः शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सहजकर्ता (facilitator) के रूप में कार्य करता है।
शिक्षा के अर्थ को दो मुख्य परिपेक्षों में समझा जा सकता है व्यापक एवं संकुचित।
शिक्षा के व्यापक अर्थ के अनुसार, यह सारा संसार हमारा शिक्षा क्षेत्र है। शिक्षा का उद्देश्य मानव व्यक्तित्व का सर्वागीण विकास है। सभी व्यक्ति, बाल, युवा, वृद्ध, स्त्री, पुरुष विद्यार्थी हैं। हम जीवन पर्यन्त कुछ न कुछ सीखते रहते हैं, अतः व्यक्ति का पूरा जीवन ही उसका शिक्षा काल है। साथ ही प्रत्येक व्यक्ति जहां स्वयं दूसरों से कुछ सीखता है, वह दूसरों को भी कुछ न कुछ शिक्षा देता है, जीवन की छोटी-छोटी घटनाएं भी हमें शिक्षा देती हैं।
शिक्षा के संकुचित अर्थ के अनुसार, शिक्षा केवल शिक्षण संस्थानों में ही दी जाती है, इसका एक निश्चित पाठ्यक्रम और अवधि है। शिक्षा का उद्देश्य विशिष्ट विषयों का ज्ञान प्राप्त करना है, जिसका मूल्यांकन होता है, और मानक उपाधि व प्रमाण-पत्र मिलते हैं। शिक्षा कहीं न कहीं कक्षा कक्ष और पाठ्य-पुस्तकों तक ही सीमित रह जाती है।
यूनेस्को द्वारा स्थापित डेलोर कमीशन (Delor Commission) ने 1996 में अपनी रिपोर्ट (Learning: The Treasure Within) में शिक्षा के द्वारा शिक्षार्थियों में मानवाधिकार, सामाजिक उत्तरदायित्व, सामाजिक समानता, लोकतांत्रिक भागीदारी, सहिष्णुता, सहकारी भावना (cooperative spirit), रचनात्मकता, पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता, शांति, अहिंसा, प्रेम, आदि मूल्य विकसित करने पर बल दिया है।
शिक्षण औपचारिक और अनौपचारिक दोनों प्रकार का हो सकता है। अनौपचारिक शिक्षा मुख्यत: परिवार और समुदाय द्वारा जीवन के आरंभिक वर्षों में प्रदान की जाती है। दूसरी तरफ औपचारिक शिक्षण में शिक्षण संस्थान एवं शिक्षक की भूमिका अहम होती है, इसमें शिक्षायों को कुछ शुल्क भी देना पड़ सकता है। वर्तमान में पारिवारिक, सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तनों के कारण शिक्षा औपचारिक बनती जा रही है।
शिक्षण की परिभाषा। DEFINITION OF TEACHING
शिक्षण को अनेक प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है।
1. शिक्षण अधिगम प्रक्रिया (learning process) की उद्देश्यपूर्ण
दिशा है। 2. शिक्षण शिक्षकों द्वारा छात्रों को प्रदान किए गए अनुभवों के आधार पर उनमें अपेक्षाकृत स्थाई परिवर्तन की प्रक्रिया है।
3. शिक्षण ज्ञान, अनुभव और वैज्ञानिक सिद्धांतों का दक्षता से समाज के लिए उपयोग में लाया जाना है, इससे हम विद्यार्थियों को सिखाने
के लिए अनुकूल वातावरण तैयार कर सकते हैं। 4. शिक्षण एक योजनाबद्ध गतिविधि है, इसकी प्रभावशीलता इस बात पर निर्भर करती है कि शिक्षार्थी कितनी सुगमता, सरलता और
शुद्धता से विषय-वस्तु को ग्रहण करते हैं। 5. शिक्षण पूर्व निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए शिक्षार्थी,
शिक्षक और अन्य चरों (variables) को सुव्यवस्थित तरीके से संगठित करने की प्रक्रिया है। 6. शिक्षण छात्रों द्वारा वांछित ज्ञान और कौशल सीखने एवं अधिग्रहण करने की प्रक्रिया है, जिससे वे समाज में बेहतर जीवन-यापन कर
सकें।
शिक्षण से संबंधित कुछ अवधारणाएँ। SOME CONCEPTS RELATED TO TEACHING
1. शिक्षण के तीन आधार (Three Pillars of Education): शैक्षणिक प्रक्रिया को तीन प्रश्नों के आधार पर तय किया जा सकता है--'क्यों', 'कैसे', और 'क्या' । 'क्यों' का उत्तर सबसे महत्त्वपूर्ण है, यह दर्शन शास्त्र द्वारा दिया जाता है, 'कैसे' का उत्तर मनोविज्ञान और 'क्या' का उत्तर समाज शास्त्र द्वारा इसलिए, हम संक्षेप में ये कह सकते हैं कि शिक्षा का मूल आधार दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान और समाज शास्त्र है।
2. आदर्शवाद (Idealism): आदर्शवाद एक अत्यंत प्राचीनवादी सिद्धांत है, जिसका प्रभाव किसी न किसी रूप में जीवन के प्रत्येक पक्ष पर पड़ता है। अरस्तु (Aristotle) के अनुसार, 'शिक्षा का मूल उद्देश्य व्यक्ति को नैतिक एवं बौद्धिक सदगुणों का आधार बनाना है। व्यक्ति को ऐसे श्रेष्ठतम मूल्यों से अलंकृत करना है, जो मानवता के लिए आवश्यक है। आदर्शवाद नैतिक मूल्यों (moral values), आध्यात्मिकता (spirituality), आत्म-अनुभूति (self-realization), अनुशासन (self-discipline), व्यक्तित्व के उन्नयन ( personality आत्म development) पर बल देता है। संक्षिप्त शब्दों में कहें तो सत्यम (truth), शिवम् (goodness) और सुंदरम (creativity) की व्याख्या आदर्शवाद की आत्मा है। अध्यापक से अपेक्षाकृत अधिक आशाएँ, कमजोर शिक्षण विधियाँ, सहशिक्षा और सर्व शिक्षा की अवहेलना, आदि इसकी मुख्य कमियां रही हैं।
3. प्रकृतिवाद (Naturalism): इसमें प्रकृति की ही शिक्षक माना गया है और पुस्तकीय ज्ञान पर कम बल दिया जाता है। बच्चा यदि वृक्ष पर चढ़ना चाहता है, तो उसे ऐसा करने हैं, गिरने से उसे अपनी भूल का एहसास होगा। यह एक प्रकार से शिक्षार्थी केंद्रित शिक्षण है। शिक्षक का कार्य छात्रों के विकास के लिए, वातावरण तैयार करना है।
इसमें ' निषेधात्मक शिक्षा' को भी सम्मिलित किया गया है, जिसके अनुसार शिक्षार्थी को असत्य मार्ग से बचाता है। 'क्रिया द्वारा सीखना' (learning by doing), अनुभव, 'इन्द्रियों द्वारा शिक्षण' निरीक्षण (observation), क्रीड़ा (play way), यूरिस्टिक (Heuristics), डाल्टन द्वारा प्रस्तावित शिक्षण विधियां मुख्य रूप से प्रकृतिवाद के अंतर्गत आती हैं।
4. प्रयोजनवाद (Pragmatism): जॉन डेवी (John Dewey) को प्रयोजनवाद का मुख्य प्रतिपादक माना गया है। इसके अंतर्गत 'क्रियाशीलता तथा व्यवहारिकता' को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। इसको प्रयोगवाद (experimentalism) भी कहा गया है। प्रयोजनवाद को अमेरिका की देन माना गया है। इसमें पूर्व निश्चित आदर्शों या सत्य का कोई स्थान नहीं। अनुभव ही सब मूल्यों की कसौटी है (learning by experience), इसे ही ज्ञान का आधार माना जाता है। इसी प्रयोजनवाद के आधार पर क्रियात्मक विद्यालय प्रणाली (activity school system) का आरम्भ हुआ।
5. अस्तित्ववाद (Existentialism): इसके मुख्य प्रतिपादक कीर्कगार्द (Kierkegard) हैं, जिनका यह कहना है, 'मेरा अस्तित्व है, क्योंकि मैं ऐसा सोचता हूँ। इसलिए मैं सोचता हूँ कि मेरा अस्तित्व है'।
इसमें व्यक्तिवाद (individualism) पर अधिक बल दिया गया है। अस्तित्व को बनाए रखने या पूर्णता लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को स्वयं संघर्ष करना पड़ता है। अस्तित्ववाद का मूलमन्त्र है- अपने आप को जानो। शिक्षकों का कर्तव्य बनता है। कि वे छात्रों में मौलिकता, सृजन शक्ति, सक्रियता, मानवतावादी दृष्टिकोण, आदि उत्पन्न करने में सहायक बने।
6. योग: परंपरागत रूप से भारतीय दर्शन के छ: रूप माने जाते हैं, जिन में से योग एक है। ऋषि पतंजलि को योगशास्त्र का रचयिता माना जाता है। योग, मन की प्रवृत्तियों को नियंत्रित करने की विद्या है। यह मात्र शारीरिक व्यायाम नहीं है। इसके आठ घटक हैं यम या आत्म नियंत्रण (self-control), नियम ( observance ), आसन (postures), प्राणायाम ( breath control), प्रत्याहार (restraint), धारणा ( mind study), ध्यान (concentration) और समाधि (meditation)। योग के इन घटकों का अनुसरण करते हुए अज्ञान को दूर किया जा सकता है एवं ज्ञान की प्राप्ति की जा सकती है।
शिक्षण की प्रकृति और विशेषताएं। Nature and Characteristics of Teaching.
हम शिक्षण की कुछ परिभाषाओं और महत्त्वपूर्ण पहलुओं की चर्चा पहले भी कर चुके हैं। नेट परीक्षा में शिक्षण की विशेषताओं पर आधारित एक दो दे प्रश्न पूछे जाने की संभावना बनी रहती है।
1. शिक्षण मूलतः एक बौद्धिक गतिविधि है।
2. शिक्षण के दो मूलभूत प्रतिरूप (teaching models) है-
प्रशिक्षक केंद्रित एवं शिक्षार्थी केंद्रित।
3. शिक्षण के विभिन्न स्तर हैं।
4. शिक्षण पाठ्यचर्या एवं पाठ्यक्रम के अनुसार होता है। 5. शिक्षण का वातावरण गतिशील होता है।
6. शिक्षण, अधिगम (learning), अनुदेश (instructions), प्रशिक्षण (training), इत्यादि का परस्पर घनिष्ठ संबंध है।
7. शिक्षण एक संव्यवसाय या वृत्ति (profession) है। शिक्षण-कौशल प्राप्त करने के लिए एक लंबी अवधि का अध्ययन और प्रशिक्षण आवश्यक है।
8. शिक्षण विज्ञान के साथ-साथ कला भी है।
उपरोक्त विशेषताओं का विस्तृत वर्णन आगामी अनुच्छेदों में किया गया है।
बौद्धिक गतिविधियां|Intellectual Activity
शिक्षण अनिवार्य रूप से एक बौद्धिक गतिविधि है। शिक्षण बौद्धिक विकास की मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है। शिक्षक की सभी गतिविधियां- शिक्षण उद्देश्यों की स्थापना, पाठ्यक्रम विकसित करना, शिक्षण प्राविधि, मूल्यांकन, इत्यादि 5 का उद्देश्य बौद्धिक विकास है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में वैयक्तिक भिन्नता के सिद्धांत (doctrine of individual 4 differences) को अपनाया जाता है।
शिक्षक के लिए यह आवश्यक है कि वह कक्षा के पर्यावरण को यथासम्भव प्रेरणात्मक बनाए। शिक्षण प्रविधियों जैसे कि मस्तिष्क झंझावाती प्राविधि (brain storming technique), जिसका वर्णन बाद में किया गया है, इत्यादि का उपयोग भी बौद्धिक विकास के उद्देश्य को ध्यान में रख कर किया जाता है।
शिक्षक शिक्षार्थियों के व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाने के लिए वांछित कार्यों की उपयुक्त योजना विकसित करता है। शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में छात्र अनिर्मित उत्पादक सामग्री (raw material) की तरह होते हैं। वे कक्षा में विभिन्न आकांक्षाएँ लेकर आते हैं। शिक्षक उनको सभ्य नागरिक के रूप में ढालता है, ताकि उनके सफल भविष्य का निर्माण हो सके।
मानसिक विकास की कई विशेषताएँ होती हैं, इसके अंतर्गत उत्तरोत्तर विकास ( progressive development), नए विचारों का विकास, विचारों की अभिव्यक्ति, संज्ञानात्मक योग्यताओं (cognitive abilities) का विकास, इत्यादि आते हैं। पाठ्यक्रम में विविधता (diversity) का मुख्य उद्देश्य शिक्षार्थियों की सृजनात्मकता (creativity) का विकास करना होता है।
विषय विशेष
मूलभूत शिक्षण प्रतिरूप। BASIC TEACHING MODELS
शिक्षण का व्यापक उद्देश्य है---शिक्षा प्रदान करना, लेकिन इस उद्देश्य को प्राप्त करने के मार्ग अलग-अलग हैं, जिनको हम शिक्षण प्रतिरूप कह सकते हैं। शिक्षण के दो मूलभूत प्रतिरूप (teaching models) हैं प्रशिक्षक केंद्रित एवं शिक्षार्थी केंद्रित।प्रशिक्षक केंद्रित दृष्टिकोण। Pedagogical Approach
यह शिक्षण का परम्परागत दृष्टिकोण है। इसमें शिक्षक का शिक्षण अधिगम प्रक्रिया, गति, सामग्री, प्रविधि पर पूर्ण नियंत्रण रहता है। शिक्षार्थी सीखने के लिए पूर्णतया शिक्षक पर आश्रित रहता है। यह तय करना पूर्ण रूप से शिक्षक का दायित्व होता है कि क्या सिखाना है और कैसे सिखाना है। शिक्षक छात्रों के सीखने की प्रक्रिया का मूल्यांकन करते हैं।इस दृष्टिकोण को आंग्ल भाषा में पेडागोजि (Pedagogy) भी कहा जाता है जिसका अर्थ है 'शिक्षण का विज्ञान'।शिष्य-केंद्रित या शिक्षार्थी केंद्रित शिक्षण। Andragogical Approach.
इस प्रतिरूप के अंतर्गत, शिक्षार्थी अधिकतर आत्म-निर्देशित होता है, और स्वयं उत्तरदायी माना जाता है। शिक्षार्थी का हित केवल ज्ञान प्राप्त करने तक सीमित नहीं है, बल्कि उसकी विवेचना में भी निहित है। शिक्षार्थी सीखने की गति भी स्वयं निर्धारित करता है। शिक्षक का कार्य सीखने के लिए मागदर्शन एवं सुगम वातावरण तैयार करना है। स्व मूल्यांकन भी इस दृष्टिकोण की एक विशेषता है।ये दोनों मूलभूत मॉडल चरम स्थितियों को वर्णित करते हैं, व्यावहारिक रूप में शिक्षण समाज और काल के अनुरूप इन दोनों के बीच में कहीं होता है।
Keep it up
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