आचारशास्त्र और नैतिकता। Ethics and Morality
आचारशास्त्र नैतिक सिद्धान्त का वह प्रतिरूप है, जो किसी व्यक्ति, व्यवहार या गतिविधि के संचालन को नियन्त्रित करता है, यह सही और गलत या अच्छे और बुरे व्यवहार के मध्य अन्तर के विषय से सम्बन्धित हैं। नैतिकता को सामान्यतः समाज, संस्कृति या धर्म द्वारा निर्धारित किया जाता है, जबकि आचारसंहिता या शास्त्र को उस व्यक्ति द्वारा स्वयं चुना जाता है जो उसके जीवन को नियन्त्रित करता है। नैतिकता सामाजिक हितों से प्रभावित पहलू है, जो विशेष रूप से गलत एवं सही सिद्धान्तों पर आधारित मानी जाती है। आचारशास्त्र या नैतिकता दर्शन, दर्शन की एक विशिष्ट शाखा मानी जाती है जिसमें सही और गलत आचरण की अवधारणाओं को व्यवस्थित, बचाव और सिफारिश करना शामिल है। सौन्दर्यशास्त्र के साथ-साथ नैतिकता का क्षेत्र, मूल्य के मामलों की चिन्ता करता है और इस प्रकार एक्सोलॉजी नामक एक दर्शन की शाखा भी शामिल है।
आचारशास्त्र (Ethics)
आचार मानव व्यवहार के वह तरीके या माध्यम हैं जो अपनी संस्कृति व संस्कारों को आत्मसात करके करता है। इनमें नैतिकता, विचारों संस्कारों का अधिक महत्त्व होता है। आचार व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण करता है। भारतीय संस्कृति के अपने निश्चित आचार, विचार, सांस्कृतिक मूल्य, मानदण्ड व आदर्श होते हैं, जो मानव के व्यवहार को नियन्त्रित व संचालित करते हैं। इन्हें ही आचार की संज्ञा दी जाती है और वह विधि जो इन सभी तथ्यों का विस्तृत अध्ययन करते हैं, उसे आचारशास्त्र कहा जाता है। अतः आचार से तात्पर्य किसी कार्य को करने के उचित ढंग से है। समाज में
व्यवहार के अनेक तरीके हो सकते हैं। हम उनमें से कोई एक अच्छा तरीका चुन लेते हैं। बीरस्टीड कहते हैं कि आचारशास्त्र के तीन उद्देश्य होते हैं
1. अन्य प्रतिमानों की तरह यह भी कुछ व्यवहारों को स्वीकृति प्रदान करता है।
2. यह महत्त्वपूर्ण सामाजिक विशेषताओं को प्रकट करता है।
3. यह उन लोगों से एक निश्चित दूरी रखता है जहाँ अधिक परिचय व घनिष्ठता की अपेक्षा नहीं की जाती है।
आचारशास्त्र के आधार पर हम एक व्यक्ति के वर्ग, चरित्र व सामाजिक संरचना का निर्माण करते हैं। चरित्र मानव की सर्वोपरि सम्पत्ति है। मनुष्य के चरित्र का निर्माण संस्कारों से होता है। मनुष्य जिस प्रकार के संस्कार संचय करता है, उसी के अनुरूप उसका चरित्र बन जाता है। संस्कार मनुष्य के उन विचारों का ही प्रौढ़ रूप है, जो दीर्घकाल तक मस्तिष्क में रहने के कारण अपना स्थायी स्थान बना लेते हैं। यही सब सदगुण मिलकर मानव व्यक्तित्व को शुभ और सुन्दर बनाते हैं। अतः आचारशास्त्र एक साधन है, जिससे समाज के विभिन्न व्यक्तियों की पहचान बनती है। आचार दूसरों के प्रति हमारी बाह्य सद्भावना को भी व्यक्त करता है, जैसे-नमस्कार करना, शुभकामनाएं देना तथा विनम्रता के साथ व्यवहार करना आदि।
नैतिकता (Morality)
नैतिकता शब्द कर्त्तव्य की आन्तरिक भावना पर बल देता है अर्थात् इसका सम्बन्ध सद्, असद और अनुचित से है। आचार सम्बन्धी नियमों का पालन, चरित्र की दृढ़ता और पवित्रता से है। नैतिकता का पालन व्यक्ति इसलिए नहीं करता कि उसके पूर्वज भी प्राचीनकाल से ऐसा करते रहे हैं या उसके आस-पास के लोग भी उसका पालन कर रहे हैं वरन् इसलिए करते हैं कि इसके पीछे न्याय, पवित्रता और सच्चाई के भाव होते है। नैतिकता का सम्बन्ध व्यक्ति के स्वयं के अच्छे और बुरे अनुभव करने पर निर्भर करता है। नैतिकता प्रथा की अपेक्षा आत्मचेतना से अधिक प्रेरित होती है। नैतिकता लोकाचारों के अधिक निकट है, क्योंकि इनमें सभी उचित-अनुचित के भाव होते है। नैतिकता जनरीतियों और लोकाचारों की अपेक्षा अधिक स्थायी है। इसमें तार्किकता पाई जाती है। न्याय, ईमानदारी, सच्चाई, निष्पक्षता, कर्तव्य परायणता, अधिकार, स्वतन्त्रता, दया और पवित्रता आदि नैतिक धारणाएँ हैं।
मानवशास्त्र का अभिन्न अंग
नैतिकता मानव समाज का अभिन्न अंग माना जाता है। मानव द्वारा किए गए किसी भी निर्माण में नैतिकता एक प्रमुख आधार होता है। मानव समाज में नैतिकता वांछित है या अवांछित, यह निर्धारित करने में समाज की वस्तुस्थिति की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। इस प्रकार नैतिकता एक दार्शनिक अवधारणा है जिसमें सही और गलत की अवधारणाओं को व्यवस्थित करना, बचाव करना और अनुशंसा करना शामिल है। यह आवश्यक है कि मनुष्यों के नैतिक व्यवहार को शामिल किया जाए। नैतिकता अच्छे या बुरे सही और गलत, गुण एवं अवगुण की भिन्नताओं से सम्बन्धित है। नैतिकता अच्छे जीवन की ओर एक चिन्ता से प्रेरित है। नैतिक दर्शन के रूप में नैतिकता, नैतिक समस्याओं और नैतिक निर्णयों के बारे में दार्शनिक सोच है। नैतिकता एक विज्ञान है, इस अर्थ में यह एक तार्किक क्रम में आयोजित तर्कसंगत सच्चाई के शरीर का समुच्चय है और एक विशिष्ट सामग्री और वस्तु है।
वर्तमान समय में नैतिकता का महत्त्व
वर्तमान समय में मानवता नैतिक मूल्यों में गिरावट का सामना कर रही है, इसके कारण लगातार संघर्ष की स्थिति बनी रहती है। एक ओर जहाँ प्रौद्योगिकी क्षमताओं में निरन्तर सुधार हुआ है, वहीं दूसरी ओर मानव समाज की मूल्य प्रणाली में आई गिरावट के कारण सुन्दरता और भौतिकवाद की प्रवृत्ति ने विभिन्न व्यक्तियों के मध्य सम्बन्धों को मूल्यहीन बना दिया है। विश्व में हिंसात्मक गतिविधियां जान तक बढ़ती जा रही हैं सेफ्टी वालों के रूप में स्थापित संयुक्त राष्ट्र संघ की नीतियों निरर्थक सिद्ध हो रही है। सामाजिक स्तर पर भी हिंसात्मक गतिविधियाँ निरन्तर बढ़ती जा रही है, असामाजिक कारक, अशान्ति के माहौल को प्रेरित कर रहे हैं, जो नैतिकता के उत्तरोत्तर विकास हेतु उचित नहीं है।
नैतिकता व आचारशास्त्र में सम्बन्ध
नैतिकता व आचारशास्त्र एक-दूसरे से सम्बन्धित अवधारणाएँ हैं। आचार मानव व्यवहार को करने का उचित तरीका बताता है तथा नैतिकता, आचारशास्त्र को उसका कार्य करने की दिशा प्रदान करती है, चूंकि दोनों का सम्बन्ध सामाजिक मूल्यों से है इसलिए दोनों सामाजिक व्यवस्था का एक आवश्यक अंग है। नैतिकता आचार के सिद्धान्तों को स्थायी बनाने में सहायता करती है व उनमें आत्मीयता लाती है। आचार संहिता ही नैतिकता की परिभाषा है तथा व्यक्ति की अन्तर्निहित क्षमता एवं व्यक्तित्व को विकसित करने वाली विधि है।
नैतिकता और आचारशास्त्र दोनों को अच्छे और बुरे या सही और गलत के बीच अन्तर को अलग करना है। बहुत से लोग नैतिकता के विषय में अध्ययन करते हैं। यह व्यक्तिगत और आदर्शयुक्त है, जबकि आचारशास्त्र एक निश्चित समुदाय द्वारा स्थापित अच्छे और बुरे के मानक होते हैं। नैतिकता सही या गलत का समाधान करती है। नैतिकता को समाज, संस्कृति या धर्म द्वारा निर्धारित किया जाता है जबकि आचारशास्त्र को उस व्यक्ति द्वारा स्वयं चुना जाता है जो उसके जीवन को नियन्त्रित करता है। नैतिकता सही या गलत सिद्धान्तों से सम्बन्धित है। इसके विपरीत नैतिकता सही और गलत आचरण पर बल देती है। नैतिकता सामान्यतौर पर धार्मिक सिद्धान्तों पर आधारित व्यवहार का एक कोड है, जो आचारशास्त्र निर्णयों को सूचित करता है। नैतिकता भीतर से आती है, जबकि आचारसंहिता कार्यस्थल में नीतियों को निर्धारित करने वाली आचार संहिता के साथ कार्य करती है। नैतिकता ऐसे व्यवहार हैं जिन्हें हम व्यक्तिगत रूप से सही और गलत के सम्बन्ध के स्पष्ट रूप से निर्धारित करते हैं।