इनसे भी चाहिए आजादी
• दुनिया चांद पर पहुंच रही है और हम परिचन पर अटके है। कई महिलाएं अभी भी जींस को अपनी वॉर्डरोब का हिस्सा बनाने के लिए संप कर रही है। कई रूपों में जाँच और नैतिक पुलिसिंग के बारे में आशंकित, विशेष रूप से सार्वजनिक स्थानों और परिवहन में महिलाएं अकसर समाज द्वारा निर्धारित अलिखित नियमों के आगे झुक जाती है। हमें चाहिए कि महिलाएं खुद को अभिव्यक्त करने में सक्षम हो आकर्षक महसूस करे अपने चुनाव परिधान पहनें।
• 18-20 वर्ष से ही शादी का दबाव और फिर मातृत्व का इससे भी फिर से चुनाव की आवश्यकता है। इसका अधिकार श्री सुरक्षित होना चाहिए।
• महिलाएं अपने करियर को लेकर संजीदा हो की है। अकसर इसे गंभीरता से नहीं लिया जाता जिसका रोड़ा होती है, शादी कई बार इसके चलते अच्छे-खासे करियर पर पूर्ण या अल्पविराम लग या यूं कहें लगवा दिया जाता है इस सोच से भी आजादी की दरकार है। यह भी चुनाव का हक महिला को होना चाहिए।
लिए मिलने वाले जैंडर फंड का 50 फीसदी हिस्सा खर्च ही नहीं हो पाता है। महिलाओं में कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम 2013 के बारे भी जानकारी का अभाव है। कर्मचारी तो कर्मचारी, संस्थान भी इसे गंभीरता से नहीं लेते। संस्थानों ने आंतरिक जांच समिति गठित कर ली है. पर शिकायत पर कार्यवाही के इंतजार में बैठी रहती हैं जबकि उनके पास न्यायपालिका जितने अधिकार होते हैं।
अपने पैसों पर है अधिकार?
क्या आपको खुद पर या अपनों पर होने वाले छोटे-मोटे खर्चा के लिए औरों के सामने हाथ फैलाने पड़ते हैं? क्या आप खुद को भविष्य में आने वाले आर्थिक उतार-चढ़ावों के लिए महफूज महसूस करती है? क्या आज भी आपको अपनी आमदनी और खर्च का हर ब्यौरा किसी और को देना होता है ? जवाब, अगर हां में है तो यकीनन आप अभी भी आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं हैं। आजादी के 75 सालों बाद भी महिलाएं अपनी आर्थिक आजादी हासिल करने की राह पर चले जा रही है। महिलाओं की आर्थिक परतंत्रता की पुष्टि अध्ययन और सर्वेक्षण भी करते हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार, टियर 2 शहरों की 50 प्रतिशत से ज्यादा गैर- कामकाजी महिलाएं खुद की आर्थिक रूप से स्वतंत्र महसूस नहीं करती हैं। एसबीआई जनरल इंश्योरेंस के सर्वेक्षण में सामने आया कि हर चार में से एक महिला सामाजिक या पारिवारिक प्रतिबंध या घर से मार्गदर्शन की कमी को अपनी आर्थिक आजादी की राह में बाधा मानती हैं।