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धर्मवीर भारती

 धर्मवीर भारती

(जीवन-अवधि: सन् 1926-1997 ई०)

धर्मवीर भारती का जन्म 25 दिसम्बर सन् 1926 ई० को इलाहाबाद में हुआ था। इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ही हिन्दी विषय लेकर एम० ए० और पी-एच० डी० की उपाधियाँ प्राप्त की तथा कुछ वर्षों तक वहीं से प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक पत्र 'संगम' का सम्पादन किया। कुछ समय तक ये इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्राध्यापक भी रहे। सन् 1959 ई० से ये बम्बई (मुम्बई) से प्रकाशित होने वाले हिन्दी के प्रसिद्ध साप्ताहिक पत्र 'धर्मयुग' के सम्पादक रहे। इनको साहित्य-साधना से प्रभावित होकर भारत सरकार ने इन्हें 1972 ई० में 'पद्मश्री' की उपाधि से अलंकृत किया था। दिनांक 4 सितम्बर, 1997 ई० की कलम का यह सिपाही इस असार संसार से विदा लेकर परलोकवासी हो गया।

धर्मवीर भारतो प्रतिभाशाली कवि, कथाकार व नाटककार हैं। इनकी कविताओं में रागतत्त्व की रमणीयता के साथ बौद्धिक उत्कर्ष की आभा परिलक्षित होता है। कहानियों और उपन्यासों में इन्होंने सामाजिक मनोवैज्ञानिक समस्याओं को उठाते हुए बड़े ही जीवन्त चरित्र प्रस्तुत किये हैं। साथ ही समाज की विद्रूपता पर व्यंग्य करने की विलक्षण क्षमता भारती जी में है। भारती जी की उल्लेखनीय कृतियों में कनुप्रिया', 'ठंडा लोहा', 'अंधायुग' और 'सात गीतवर्ष' (काव्य), 'गुनाहों का देवता', 'सूरज का सातवाँ घोड़ा' (उपन्यास), 'नदी प्यासी थी' (नाटक); 'कहनी-अनकहनी', 'ठेले पर हिमालय', 'पश्यंती' (निबन्ध संग्रह) है।इसके अतिरिक्त विश्व की कुछ प्रसिद्ध भाषाओं की कविताओं का हिन्दी अनुवाद भी 'देशान्तर' नाम से प्रकाशित हुआ। 

भारती जी की रचनाओं में परिष्कृत और परिमार्जित भाषा का प्रयोग मिलता है। इनकी भाषा में सरलता, सहजता, संजीवता, प्रवाहपूर्णता, सशक्तता और आत्मीयता का पुट है। इनकी भाषा में तत्सम तद्‌भव और देशज सभी प्रकार के शब्दों के प्रयोग हुए हैं। मुहावरों और कहावतों के प्रयोग से भाषा में गति आ गयी है। इनकी रचनाओं में विषय और विचार के अनुरूप

भिन्न-भिन्न शैलियों के प्रयोग हुए हैं। इन्होंने अपनी रचनाओं में भावात्मक, समीक्षात्मक, चित्रात्मक, वर्णनात्मक, व्यंग्यात्मक है।

आदि शैलियों के प्रयोग मुख्य रूप से किये हैं। इनकी भाषा-शैली किसी भी पाठक को सहज ही आकर्षित कर लेती है। प्रस्तुत निबन्ध 'ठेले पर हिमालय' में हिमालय की रमणीय शोभा का वर्णन है। शीर्षक की विचित्रता के साथ नैनीताल से कौसानी तक की यात्रा का वर्णन कम रोचक नहीं है और शैली में नवीनता इसका मुख्य कारण है। नयी कविता और हिन्दी गद्य-साहित्य के विकास में भारती जी का अविस्मरणीय योगदान है। ये एक कवि, नाटककार, कथाकार, निबन्धकार, पत्रकार और उपन्यास लेखक के रूप में हिन्दी साहित्य में अपना विशिष्ट स्थान रखते है।

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