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घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के प्रमुख प्रावधानों को स्पष्ट कीजिए।

 घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के प्रमुख प्रावधानों को स्पष्ट कीजिए। (SU2020) 

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 घरेलू हिंसा: भारतीय समाज की पारिवारिक समस्याओं के अन्तर्गत घरेलू हिंसा की समस्या वर्तमान युग की एक मुख्य समस्या है जिसके कारण परिवार में नारी को सुरक्षा देने के बजाय न उसका तिरस्कार किया जाता है बल्कि अमानवीय ढंग से उन्हें अपमानित करके अपने अस्तित्व को भूल जाने के लिए विवश किया जाता है। इतिहास के अधिकांश युगों में नारी का जीवन उपेक्षित व अपमानित होता रहा, किन्तु आज जैसे-जैसे समताकारी मूल्यों का महत्व बढ़ता जा रहा है वह अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो रही है। सभी सामाजिक, आर्थिक विकास के बावजूद आज महिलाएँ किसी न किसी रूप में हिंसा का शिकार होती रही है। सन् 2001 में संयुक्त राज्य संघ ने महिला सशक्तीकरण के रूप में घोषित करके स्त्रियों को किसी भी अत्याचार से बचाने के लिए कई घोषणाएँ की गयी, लेकिन उनका जीवन आज पहले से असुरक्षित बन गया है। भारत वर्ष में लगभग 18 स्त्रियों को घरेलू शिकार बनना पड़ता है। घरेलू हिंसा का सम्बन्ध स्त्रियों की उस उत्पीड़न से हैं जो किसी महिला के निकट सम्बधियों जैसे, माता-पिता, सास- श्वसुर, देवर, ननद, पति द्वारा किया जाता है और इसका स्वरूप छिपा हुआ रहता है। वास्तव में घरेलू हिंसा को 2 अर्थों में स्पष्ट किया जा सकता है।


घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम 2005 भारत में घरेलू हिंसा से सम्बन्धित समस्या के निदान हेतु निम्नलिखित सरकारी एवं गैर-सरकारी प्रयास किए गये हैं। इस सम्बन्ध में भारत सरकार ने समाज में 'घरेलू हिंसा' रोकने के प्रभावकारी कदम के रूप में महिलाओं का घरेलू हिंसा संरक्षण अधिनियम 2005' (The Protection of Women against Domestic Violence, Act 2005) पारित हुआ है। यह कानून 26 अक्टूबर 2006 से लागू कर दिया गया है। यह कानून काफी प्रभाव कारी सिद्ध हुआ है। इस कानून की महत्त्वपूर्ण बातें निम्न प्रकार हैं 

(i) यह अधिनियम किसी भी ऐसे व्यक्ति को पुलिस में शिकायत दर्ज कराने का अधिकार देता है, जिसे यह विश्वास हो कि महिला का उत्पीड़न किया गया है। इस अधिनियम के अन्तर्गत शिकायत पर तीन दिन के अन्दर सुनवाई होगी और 60 दिन के अन्दर मामले का निपटारा करना होगा।

(ii) इस अधिनियम के तहत पत्नी, बहन, माँ, विधवा या परिवार में रहने वाली सभी महिलाओं को सम्मिलित किया गया है। 

(iii) घरेलू हिंसा में मुख्य रूप से महिलाओं के शरीरिक, मानसिक, यौन, मौखिक और आर्थिक शोषण तथा महिला को आत्महत्या के लिए उकसाना को भी सम्मिलित किया गया है।

(iv) पीड़ित महिला की सहायता के लिए चिकित्सा जाँच, कानूनी सहायता, सुरक्षित आश्रम आदि की भी व्याख्या इस अधि नियम में की गयी है।

(v) अधिनियम में पीड़ित महिला की सहायता हेतु संरक्षण अधिकारियों एवं गैर-सरकारी संगठनों की नियुक्ति का भी प्रावधन किया गया है।

(vi) इस कानून से पूर्ण 'घरेलू हिंसा' सम्बन्धित मामले L.P.C की धारा 498 के तहत निपटाये जाते थे, जिसकी अपनी कुछ सीमाएँ भी थी और वास्तव में पीड़ित को कोई राहत नहीं मिल पाती थी। लेकिन इस अधिनियम के द्वारा Section 498 A जोड़ दिया गया है और इसे गैर-जमानती अपराध की श्रेणी में रख दिया गया है। दोष सिद्ध होने की स्थिति में अपराधी को तीन वर्ष तक का कारावास और 20,000 रुपये तक का आर्थिक दण्ड लगाया जा सकता है। दहेज हत्या मामलों में न्यूनतम सात साल की सजा दी जा सकती है।

इसके अतिरिक्त भारत में अनेक महिला संगठन, स्वयं सेवी संस्थाएँ घरेलू हिंसा रोकने हेतु प्रयासरत हैं। स्त्रियों की शिक्षा पर जोर देकर उन्हें जागरूक बनाने की दिशा में सार्थक प्रयत्न हो रहे हैं। इससे स्पष्ट हैं कि भारत में घरेलू हिंसा की समस्या कम गम्भीर नहीं है। इस दृष्टिकोण से अब तक किये गये सभी प्रयास नाकाफी हैं। आवश्यकता इस बात की है कि 'घरेलू हिंसा' का समाधान नैतिक एवं सामाजिक दायित्व के रूप में खोजा जाय।

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