ग्रामीण एवं खेतिहर समाज। Rural and Peasant Society

 ग्रामीण एवं खेतिहर समाज (Rural and Peasant Society)

इस अध्याय में 

  1. ग्रामीण एवं खेतिहर समाज की अवधारणा
  2. जाति जनजाति तथा बस्तियाँ। 
  3. कृषि सामाजिक संरचना और उभरते सम्बन्ध
  4. भू-स्वामित्व और कृषक सम्बन्ध 
  5. जजमानी व्यवस्था
  6. कृषक अर्थव्यवस्था का हास, विकृषिकरण
  7. मानव प्रवास या प्रवसन
  8. कृषक असन्तोष एवं कृषक (खेतिहर) आन्दोलन
  9. बदलते अन्तर समुदाय सम्बन्ध और हिंसा

ग्रामीण एवं खेतिहर समाज, समाज के उस वर्ग को कहते हैं जो भूमि के एक निश्चित भाग पर छोटी झोंपड़ियों, कच्चे-पक्के घरों में निवास करते हैं। इनका मुख्य व्यवसाय कृषि व पशुचारण होता है, जिससे ये अपनी आजीविका चलाते हैं।

ग्रामीण एवं खेतिहर समाज की अवधारणा। (Concept of Rural and Peasant Society)

ग्राम या गाँव मानव के सामूहिक जीवन का प्रथम पालना माना गया है। मानव ने सबसे पहले जब सामूहिक रूप से रहना प्रारम्भ किया, तो गाँव ही उसका निवास स्थान रहा। संसार की अधिकांश जनसंख्या आरम्भ से लेकर अन्त तक ग्रामों में ही बसी है। इस प्रकार मानव समाज एवं सभ्यता हजारों वर्ष से ही ग्रामीण रही है। नगरीय जीवन तो पिछली कुछ शताब्दियों की देन है। लॉरी नेल्सन (Lowry Nelson Rural Sociology) लिखते हैं, "अभी थोड़े समय पूर्व तक के मनुष्य की कहानी अधिकांशतः ग्रामीण मनुष्य की ही कहानी है।"

वह समाज जहाँ अपेक्षाकृत अधिक समानता, अनौपचारिकता, प्राथमिक समूहों की प्रधानता, जनसंख्या का कम घनत्व तथा कृषि या खेती ही मुख्य व्यवसाय हो, उसे ग्रामीण समुदाय कहते हैं। यद्यपि इनका मुख्य व्यवसाय कृषि ही होती है, जिसके कारण इन्हें खेतिहर समाज भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त ग्रामीण समाज को ग्रामीण समुदाय भी पुकारा जाता है।

ग्रामीण समुदाय (Rural Community)

मानव जीवन का सबसे प्राचीन स्थान गाँव या ग्राम अथवा ग्रामीण समुदाय है। गाँव का उद्भव या विकास किस प्रकार हुआ, यह तो निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता, लेकिन इतना अवश्य कहा जा सकता है कि गाँव मनुष्य के जीवन में अति प्राचीनकाल से विद्यमान है।

ग्रामीण समुदाय की परिभाषाएँ

गाँव शब्द सुनने में जितना सरल लगता है, इसको परिभाषित करना उतना सरल नहीं है। इसका मुख्य कारण यह है कि आज के परिवर्तनशील युग में गाँव और नगर में कोई स्पष्ट विभाजक रखा नहीं खींची जा सकती। यदि एक सिरे पर पुरवा (Hamlet) है, तो दूसरे सिरे पर बड़ा नगर है, उसी के मध्य गाँव भी आ जाता है। प्रसिद्ध ग्रामीण समाजशास्त्री बर्ट्रेण्ड ने शायद इसलिए ग्रामीण-नागरिक निरन्तरता में ग्रामीणता और एण्डरसन ने जीव का ग्रामीण रंग आदि शब्दों का प्रयोग किया है।


1.पीक के अनुसार, ग्रामीण समुदाय परस्पर सम्बन्धित तथा असम्बन्धित उन व्यक्तियों का समूह है, जो अकेला परिवार से अधिक विस्तृत एक बहुत बड़े घर का परस्पर निकट स्थित घरों में कभी अनियमित रूप में तथा कभी एक गली में रहता है तथा मूलत: अनेक कृषि योग्य खेतों में सामान्य रूप से कृषि करता है, मैदान भूमि को आपस में बाँट लेता है और आस-पास की बेकार भूमि में पशु चराता है, जिस पर निकटवर्ती समुदायों की सीमाओं तक वह समुदाय अधिकार का दावा करता है। अपने 

2. सिम्स के अनुसार, समाजशास्त्रियों ने ग्रामीण समुदाय शब्द को कुछ ऐसे विस्तृत क्षेत्रों तक सीमित कर देने की बढ़ती हुई प्रवृत्ति कहा है, जिनमें सब या अधिकतर मानवीय स्वार्थों की पूर्ति होती है। 

3.एण्डरसन के अनुसार, एक ग्रामीण समुदाय वह क्षेत्र है, जिसमें वहाँ निवास करने वाले लोगों की सामाजिक अन्तर्क्रियाएँ और संस्थाएँ सम्मिलित हैं, जिनमें वह खेतों के चारों ओर बिखरी झोपड़ियों या ग्रामों में रहता है, जो उनकी सामान्य गतिविधियों का केन्द्र है।

अतएव उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि ग्रामीण समुदाय एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र होता है। इसी में व्यक्ति निवास करते हैं तथा उनका मुख्य व्यवसाय कृषि होता है। समुदाय में उनका सामान्य जीवन व्यतीत होता है। ग्रामीण समुदाय में सामुदायिक भावना पाई जाती है।

ग्रामीण समुदाय की विशेषताएँ

ग्रामीण समुदाय की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं

कृषि ही मुख्य व्यवसाय।    -      सरल एवं सादा जीवन

परिवार का अधिक महत्त्व।   -     प्राकृतिक निकटता

सामाजिक जीवन में एकरूपता। - श्रम के विशेषीकरण का अभाव

अशिक्षा व भाग्यवादिता।       -    जीवन का निम्न स्तर

सामाजिक गतिशीलता का अभाव। - धर्म एवं परम्परा का अधिक महत्त्व

संयुक्त परिवार महत्त्व प्रणाली। -  प्राथमिक नियन्त्रण की प्रधानता

चार्ल्स होफर लिखते हैं, "ग्रामीण समाजशास्त्र अन्य सभी विज्ञानों के समान ही किसी आवश्यकता के परिणामस्वरूप विकसित हुआ है। वैज्ञानिक विचारों के क्षेत्र में यह एक मूल तथ्य है कि जब कभी मानव मस्तिष्क को विचलित कर देने वाली घटनाओं का वर्तमान विज्ञानों अथवा पद्धतियों द्वारा सन्तोषप्रद अध्ययन नहीं किया जाता है, उसी समय कोई-न-कोई विज्ञान प्रकाश में आता है। "






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